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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ. ३ सू. २६ पक्षीणां लेइयादिनिरूपणम् ४१५ सहस्राणि भवन्तीति । 'चउप्पयथलयर पंचिदियतिरिक्खजोछियाणं पुच्छा' चतुष्पद स्थलचरपञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकानां भदन्त ! कतिविधो योनिसंग्रहः प्रज्ञप्त इति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' हे गौतम! 'दुविहे पत्ते' द्विविधो-द्वि प्रकारको योनिसंग्रहः प्रज्ञप्तः - कथित इति, 'तं जहा ' तद्यथा - 'जराउया संमुच्छिमाय' जरायुजाः मुच्छिमार, अत्र अण्डजव्यतिरिक्ता गर्भव्युत्क्रान्तिकास्ते सर्वे जरायुजा इति । अत्र जरायुजपोतजयो रुत्पत्तिस्थानस्य समानत्वात् जरायुजानां बाहल्याच एकएव गृहीतः पोतजोऽवान्तर्गत इति न विवक्षित इति । 'से किं तं जराउया, दस लाख हैं । 'चउप्पयथलयर पंचिदिय तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा' हे भदन्त ! चतुष्पदस्थलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों का योनि संग्रह कितने प्रकार का है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा ! दुविहे पन्नत्ते' हे गौतम ! इनका योनिसंग्रह दो प्रकार का कहा गया है 'तं जहा' जैसे'जराउयाय समुच्छिमाय' जरायुज और संमूच्छिम यहां अण्डज से भिन्न जितने भी गर्भज हैं वे या तो जरायुज होते हैं या पोतज होते है। चतुष्पदस्थलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव अण्डज नही होते है खेचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव ही अण्डज होते हैं। इसलिये चतुष्प - दस्थलचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च जीव या तो गर्भज होंगे या पोतज होंगे या संमूच्छिम होंगे पर यहा जो दो प्रकार का योनि संग्रह कहा गया है वह जरायुज और पोतजों का उत्पत्ति स्थान समान होने से तथा जरायुजों की बाहल्यता को लेकर एक जरायुज नाम का भेद ही ग्रहण डुस डोटी इस साखनी छे. 'चउप्पयथलयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा' હે ભગવન્ ચતુષ્પદ સ્થલયર ૫ચેન્દ્રિય તિર્યંન્યેાનિકોના ચેાનિ સંગ્રહ કેટલા પ્રકારना हे ? या प्रश्नना उत्तरमा प्रभु आहे छे 'गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते' हे गौतम । तेथे/नो योनिसंग्रह मे अारना हेवामां आवे छे. 'त' जहा' भ ‘जराज्याय स ंमुच्छिमाय' भरायुन भने संभूर्च्छिभ सहियां मंडलथी भूहा જેટલા ગર્ભજ જીવા છે, તેએ યાતે! જરાયુજ હાય છે, અથવા પેાતજ હાય છે. ચતુષ્પદ સ્થલચર ૫'ચેન્દ્રિય તિગ્યાનિક જીવા અંડજ હોતા નથી. ખેચર ૫'ચેન્દ્રિય તિય ચૈાનિક જીવેાજ અંડજ હોય છે. તેથી ચતુષ્પદ સ્થલચર ખેંચેન્દ્રિય તિય ચૈાનિક જીવે ગજ હોય છે, અથવા પેાતજ હોય કે સમૂમિ હોય છે. પરંતુ અહિયાં જે એ પ્રકારનેા ચેાનિસંગ્રહ કહેલ છે, તે જરાયુજ અને પેાતોના ઉત્પત્તિ સ્થાનની સરખા હેાવાથી તથા જરાયુજોના બહુલપણાને લઈને એક જરાયુજ નામના ભેદ જ ગ્રહણ કરેલ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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