SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ. २ सू. १८ नारकजीवानां संहनननिरूपणम् २४५ अस्थीनि न भवन्ति 'णेव छिरा' नैव शिरा भवन्ति 'णवि हारू' नापि स्नायवो भवन्ति 'व संघयणमत्थि' नैव संहननमस्ति यत्रैव शरीरे अस्थ्यादीनि भवन्ति तत्रैव संहननमपि भवति नारकशरीरे अस्थ्याद्यभावात् संहननाभावो भवतीति । संहननाभावे तेषां शरीराण्येव कथमित्याशङ्कायामाह - 'जे पोग्गला' इत्यादि, 'जे पोग्गला अणिट्ठा जाव अमणामा' ये पुद्गला अनिष्टा यावदमनोऽमाः, यावत्पदेनाकान्ता अप्रिया अमनोज्ञाः एषां विशेषणानां संग्रहो भवतीति । ' ते तेसि संघायत्ताए परिणमंति' ते पुद्गला अनिष्टादि विशेषयुक्ताः तेषां नारकाणां शरीरसंघात तया शरीराकारेण परिणमन्ति अनिष्टादिविशेषणयुक्ताः पुद्गलाः नारकाणां शरीराकारेण परिणमन्ति किन्तु तत्र शरीरे अस्थ्यादीनामभावेन संहनन शिराएँ नहीं होती है । णवि पहारु' स्नायुएं नहीं होती हैं । 'णेव संघयण मस्थि' इसलिये नारकों का शरीर संहनन से हीन कहा गया है- क्योंकि जिस शरीर में अस्थि आदि होते है वहीं पर संहनन होता है. नारकों के शरीर में अस्थि आदि हैं नहीं इस कारण वहां संहनन का अभाव हैशंका- यदि नारकों के शरीर संहनन से हीन हैं तो फिर वे शरीर पदवाच्य कैसे हो सकते हैं ? - इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'जे पोग्गला अणिट्ठा, जाव अमणामा' हे गौतम! जो पुगल अनिष्ट यावत् अमनो Sम होते हैं वे 'तेसिं शरीर संघयत्ताए परिणमंति' उनके शरीर रूप से परिणमते हैं। यहां यावत्पद से 'अकान्त, अप्रिय, अमनोज्ञ' इन पदों का संग्रह हुआ है. तात्पर्य कहने का यही है कि यद्यपि नारकों का नारोना शरीरोमां हाउभा होता नथी. 'णेव छिरा' शिराओ । होती नथी. 'णवि हारू' स्नायुयो होता नथी. 'णेवस' घयणमत्थि' तेथी नार। ના શીશ સંહનન વિનાના કહેવામાં આવેલ છે, કેમકે જે શરીરમાં હાડકા વિગેરે હાય છે, ત્યાંજ સંહનન હોય છે નારકાના શરીરમાં હાડકા વિગેરે હાતાજ નથી તે કારણથી તેઓને સંહનના અભાવ કહેલ છે. શકા–જો નારકોના શરીર સંહનન વિનાના છે, તેા પછી તે ‘શરીર’ એ પદથી યુકત કેવી રીતે હોઇ શકે ? या प्रश्नना उत्तरमा प्रभु छे 'जे पोग्गला अणिट्ठा जाव अमणामा ' हे गौतम! युगसेो अनिष्ट यावत् समनाम होय छे, तेथे 'तेसिं' सरस घायत्ताए परिणमंति' तेयोना शरीर ३ये परिशु मे छे. मडियां यावत्य थी 'अकान्त, अप्रिय, अमनोज्ञ' मा त्र होना संग्रह थयो छे. કહેવાનુ તાત્પર્ય એ છે કે જો કે નારાના શરીર સંહનન નામ કમ ના ઉદયના અભાવમાં હાડકા વિગેરેના અભાવમાં સંહનન વાળા હાતા નથી. જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy