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________________ २४४ जीवाभिगमसूत्रे रत्नप्रभायां पृथिव्या नैरयिकाणां शरीराणि कीदृशानि गन्धेन प्रज्ञप्तानि ? गौतम स यथानामकः अहिमृत इति वा, तदेव यावदधः सप्तम्याम् । एतस्यां खलु भदन्त ! रत्नपभायां पृथिव्यां नैरयिकाणां शरीराणि कीदृशानि स्पर्शेन प्रज्ञप्तानि? गौतम ! स्फटितच्छवि विच्छवयः खरपरुषमामसुषिराणि स्पर्शेन प्रज्ञप्तानि । एवं यावदधः सप्तम्याम् ॥सू० १८॥ टीका--'इमीसे णं भंते' एतस्यां खलु भदन्त ! 'रयणप्पभाए पुढवीए' रत्नप्रभायां पृथिव्याम् 'नेरइयाणं' नैरयिकाणाम् 'सरीरया किं संघयणी पन्नत्ता' शरीराणि किं संहननानि-कीदृशसंहननयुक्तानि भवंतीति प्रश्नः, भगवानाह'गोयमा' इत्यादि, गोयमा ! हे गौतम ! 'छण्हं संघयणाणं असंघयणा' षण्णांसंहननानामसंहननानि नारकशरीराणि भवंतीति । नारकशरीराणि कुतः संहननवन्ति न भवन्ति तत्राह-'णेवट्ठी' इत्यादि, 'णेवट्ठी' नैवास्थि, नारकशरीरे अब सूत्रकार नारक जीवों का संहनन प्रकट कहते हैं 'इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाण सरीरया किं संघयणी' इत्यादि सूत्र-१८ टीकार्थ-गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछे है-'इमीसे णं भंते !' हे भदन्त ! इस 'रयणप्पभाए पुढवीए' रत्नप्रभा पृथिवी में 'सरीरया' नैरकियों के शरीर 'किं संघयणी पनत्ता' किस संहनन वाले कहे गये हैं ? 'गोयमा छह संघयणाणं असंघयणा' उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम ! नारकों के शरीर छह संहननों के बीच में से किसी भी एक संहनन वाले नही कहे गये हैं। क्योंकि नारकों के शरीर संहनन से हीन होते हैं। ये संहनन से हीन क्यों होते हैं ? इसका कारण का कथन करते हुए सूत्रकार कहते हैं-'णेवट्ठी' नारक के शरीर में हड्डियां नहीं हैं 'णेव छिरा' ७वे सूत्र॥२ ना२४ वान। संहनन नि३५ ४२ छ. 'इमीसे णं भते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं सरीरया किं संघयणी' त्या टी -गीतमस्वामी प्रसुन से पूछयु छ है 'इमीसे णं भंते ! हे महन्त ! मा 'रयणप्पभाए पुढवीए' २त्नमा पृथ्वीमा 'सरीरया' नैयिनी शरी'कि संघयणी पण्णत्ता' या संहनना ४ा छ ? 'गोयमा ! छण्ह संधयणाणं असघयणा' मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४ छ है गौतम ! નારકોના શરીરે છે સંહનને પૈકી કઈ પણ એક સંતનનવાળા હોતા નથી. કેમકે નારકેના શરીરે સંહનન વિનાના હોય છે. તેઓ સંહનન વિનાના म हाय छे. से संबंधमा तेनु ४२६ मतातi सूत्र२ ४ छ णेवदी' જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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