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________________ पीयूषवर्षिणी-टीका. सू. ४६ अम्बडपरिव्राजकविषये भगवद्गीतमयोःसंवादः ६११ जुद्धं ५७, बाहुजुद्धं ५८, लयाजुद्धं ५९, ईसत्थं ६०,छरुप्पवायं६१, धणुव्वेयं ६२, हिरणपागं ६३, सुवण्णपागं ६४, सुत्तखेडं ६५, यथा लता वृक्षमारोहन्ती आमूलमांशिरो वृक्षमावेष्टयति, तथा यत्र योधः प्रतियोधशरीरं गाढं निपीड्य भूमौ पातयति तल्लतायुद्धम् ५९, 'ईसत्थं' इषुशास्त्रं नागवाणादिदिव्यास्त्रसूचकं शास्त्रम् , 'ईसत्थं' इति प्राकृतशैल्या इषुशास्त्रम् ६०, 'छुरप्पवायं' क्षुरप्रपातम्, क्षुरः='क्षुरा' इति प्रसिद्धः छेदनशस्त्रविशेषः, तस्य प्रपातः पातनम् ६१, 'धणुव्वेयं' धनुर्वेदं धनुशास्त्रम् ६२, 'हिरण्णपागं' हिरण्यपाक-रजतसिद्धिं ६३, 'सुवण्णपागं' सुवर्णपाकं-कनकसिद्धिम्, 'सुवण्णपागं' इत्यत्र समवायाङ्गराजप्रश्नीयसूत्रोक्तयोः 'मणिपागंधातुपागं' इत्यनयोः समावेशः ६४, 'मुत्तखेड' सूत्रखेलं सूत्रक्रीडाम् ६५, 'वट्टखेडं' वृत्तखेलम् ६६, एतत्कलाद्वयं लोकतो बोध्यम्। 'वट्टखेडं इत्यत्र 'चम्मखेडं' चर्मखेलम्-इत्यस्य समवायाङ्गोक्तस्य समावेशः। वृक्ष पर चढ कर नीचे से ऊपर तक वृक्ष को लपेट लेती है उसी प्रकार योधा जिस युद्ध में प्रतियोधा के शरीर को अत्यन्त पीड़ित कर जमीन पर पटक देते हैं और उसके ऊपर चढ़ बैठते हैं वह लतायुद्ध है उसकी, (६० ईसत्थं) इषुशास्त्र की, 'ईसत्थं ' यहां पर प्राकृतशैली से इषुशास्त्र समझना चाहिये । नागबाण आदि दिव्य अस्त्र आदि का सूचक जो शास्त्र है उसका नाम इषुशास्त्र है उस की, (६१ छुरप्पवायं) छुरा से युद्ध करने की, (६२ धणुव्वेयं) धनुर्वेद की, (६३ हिरण्णपागं) रजतसिद्धि की, (६४ सुवण्णपागं ) सुवर्णसिद्धि की, राजप्रश्नीय एवं समवायांग में कथित मणिपाक और धातुपाक का समावेश यहीं करना चाहिये । (६५ सुत्तखेडं) सूत्र-डोरा से खेलने की, (६६वट्टखेडं) वर्त्त-रस्सी पर खेलने की, यहाँ पर समवायाङ्गोक्त-(चम्मखेडं) चमड़ा से खेलना-इसका भी समावेश प्रज्ञप्ति + अहिपाहन ४२८ (दिद्विजुद्धं) दृष्टियुद्धनी मने 'राजप्रश्नीय' सूत्रमा मतावस (असिजुद्धं) तसारथी युद्ध ४२वाने समावेश थये। छ. ५५ (निजुद्धं) भयुद्धनी, ५६ (जुद्धाइजुद्धं) 11 माहि प्रक्षेपपूर्व ४ [। भारीने] महायुद्ध ४२वानी, ५७ (मुद्विजुद्धं) मुष्टियुद्ध ४२वानी, ५८ (बाहुजुद्धं) माथी युद्ध ४२वानी, ५८ (लयाजुद्धं) सतायुद्धनी, तेरी सता[स] वृक्ष ५२ यडीने नायथी अ५२ सुधा વૃક્ષને લપેટી લે છે તેવી જ રીતે ચોધા જે યુદ્ધમાં સામેના યોધાના શરીરને ગાઢરૂપથી પીડા કરી જમીન ઉપર પાડી દે છે અને તેના ઉપર ચડી બેસે છે તે લતાયુદ્ધ छ, तेनी; ६० (ईसत्थं) षुशासनी, 'ईसत्थं' 41 प्राकृत शवीथी धुशार सभा લેવું જોઈએ. નાગબાણ આદિ દિવ્ય અસ્ત્ર આદિનું સૂચક જે શાસ્ત્ર છે તેનું નામ ४५शा छ.तेनी, ११ (छुरप्पवाय) ७२राथी युद्ध ४२१।नी, ६२ (ध गुब्वेय) धनुनी , १३ (हिरण्णपागं) २०४सिद्धिनी, ६४ (सुवण्णपागं) सुवर्ण सिद्धिनी, 'राजप्रश्नीय'
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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