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________________ ६१० औपपातिकसूत्रे ५२,सगडवूहं ५३, जुद्धं ५४, निजुद्धं ५५, जुद्धाइजुद्धं ५६, मुट्ठिवृह' प्रतिव्यूहम् व्यूहप्रतिपक्षिभूतं व्यूह-सैन्यरचनाविशेषम् ५०, 'चकवूह' चक्रव्यूहम् = सैन्यस्य चक्राकाररचनाविशेषम् ५१, 'गरुलवूह' गरुडव्यूहं गरुडाकृति सेनानिवेशपरिज्ञानम् ५२, 'सगडवूह' शकटव्यूह-शकटाकृतिसैन्यरचनम् ५३, 'जुद्धं ' युद्धं संग्रामम् , 'जुद्धं' इत्यत्र ज्ञाता-समवायाङ्गोक्तस्य 'अद्विजुद्धं' इत्यस्य, तथा-समवायाङ्गोक्तस्य 'दंडजुद्धं' इत्यस्य, तथा जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिकथितस्य 'दिद्विजुद्धं' इत्यस्य, तथा-राजप्रश्नीयसूत्रोक्तस्य 'असिजुद्धं' इत्यस्य च समावेश: ५४, 'निजुद्धं' नियुद्धं मल्लयुद्धम् ५५, 'जुद्धाइजुद्धं ' युद्धातियुद्धम् खड्गादिप्रक्षेपपूर्वकं महायुद्धम् ५६, 'मुट्ठिजुद्धं' मुष्टियुद्धम् , योधयोः परस्परं मुष्ट्या हननम् ५७, 'बाहुजुद्धं ' बाहुयुद्धम् ५८, 'लयाजद्धं' लतायुद्धगयं रहस्सगयं सभासंचारं " इस पाठ का समावेश हुआ है । (४९ वूह, शकट आदि के आकार में सैन्य स्थापित करने की, (५० पडिवहं) व्यूह के प्रतिपक्षी व्यूह की रचना करने की, (५१ चकवूह) चक्रव्यूह की सैन्य को चक्राकर रचने की, (५२ गरुलव्वूह) गरुङव्यूह की-गरुड़ की आकृति के समान सैन्य को रचने की, (५३ सगडहं) शकट की आकृति के समान सैन्य को रचने की, (५४जुद्धं) संग्राम करने की, यहाँ पर ज्ञाता, समवायाङ्ग में कथित (अद्विजुद्धं) अस्थियुद्ध का, (दंडजुद्धं) दंडयुद्ध का, त्था जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति में प्रतिपादित (दिद्विजुद्धं ) दृष्टियुद्ध का और राजप्रश्नीय सूत्र में बताया गया (असिजुद्धं) तलवार से युद्ध करने का समावेश हुआ है, (५५ निजुद्धं) मल्लयुद्ध की, (५६ जुद्धाइजुद्धं) खङ्गादिप्रक्षेपपूर्वक महायुद्ध करने की, (५७ मुट्ठिजुद्धं) मुष्टियुद्ध करने की, (५८ बाहुजुद्धं) बाहु से युद्ध करने की, (५९ लयाजुद्धं) लतायुद्ध की, जिन प्रकार लता 'चंदलक्खण' यंद्रभाना सक्षy ‘सूरचरियं राहुचरियं गहचरिय' सूर्यनी यास, रानी यास तेमन अडानी यास से यांनी समावेश 'चार' मां सम४वा न . ४८ (पडिचार) Uष्ट-मनिष्ट न खiतिम यहि जियाविशेषना विज्ञाननी, मही समवाय मम स "सोभागकरं, दोभागकरं, विजागय, मंतगयं, रहस्सगयं, सभासंघारं” २॥ ५४नी समावेश थयो छे, ४८ (वूह) श४८ [] माहिना मा२मा सैन्य स्थापित ४२वानी, ५० (पडिवूह) न्यूडना प्रतिपक्षी न्यूडनी स्यना ४२वानी, ५१ (चक्वूह) य.. व्यूडनी-सैन्यने २।४।२ २यवानी, ५२ (गरुलवूह) १२७०यूडन:-रुनी मातिनावी सैन्यस्यना ४२वानी, ५3 (सगडबृहं) शनी २॥ति ना समान सैन्य स्यवानी, ५४ (जुद्ध) संग्राम ४२वानी, मडी 'ज्ञाता बने समवायांग' मा ४९८ (अद्विजुद्धं) मस्थियुद्धनी, (दंडजुद्धं) युद्धन तथा जंबुद्वीप
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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