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________________ ४२० . औपपातिकसूत्रे वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-सुअक्खाए ते भंते ! णिग्गंथे पावयणे जाव किमंग ! पुण एत्तो उत्तरतरं ? एवं वदित्ता जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए ॥ सू०६० ॥ णमंसित्ता एवं वयासी' वन्दित्वा नमस्यित्वा एवमवादीत्- मुअक्खाए ते भंते ! णिग्गंथे पावयणे जाव किमंग ! पुण एत्तो उत्तरतरं ' स्वाख्यातं तव भदन्त ! निम्रन्थं प्रवचनम् यावत् किमङ्ग ! पुनरेतस्मादुत्तरतरम् ! ' एवं वदित्ता जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसं पडिगए' एवम् उदित्वा यस्या एव दिशः प्रादुर्भूतः, तामेवं दिशं प्रतिगतः ॥ सू० ६० ॥ वयासी) वंदना एवं नमस्कार कर फिर उन्होंने प्रभु से इस प्रकार कहा-(सुअक्खाए ते भंते ! णिग्गंथे पावयणे) हे भदन्त ! आपने निर्ग्रन्थ प्रवचन का उपदेश बहुत ही सुन्दरपूर्वापरविरोधरहित-सर्वोत्कृष्ट किया है। (जाव किमंग पुण एत्तो उत्तरतर) इस निर्ग्रन्थ प्रवचन में ऐसा कोई सा भी विषय बाकी नहीं बचा जिस पर आपने प्रकाश न डाला हो-- अच्छी तरह से विवेचन नहीं किया हो । आपने सब कुछ एक ही साथ बहुत ही अच्छी तरह मीठे शब्दों में समझा दिया है, हमने तो ऐसा उपदेश आजतक नहीं सुना, कल्याण एवं जीवनके उपयोगी सब विषय आपने कहे हैं।-इत्यादि । एवं वदित्ता जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए) इस प्रकार प्रभु की स्तुति रूप में कह कर कूणिक राजा जिस दिशा से आये थे उसी दिशा की ओर वहां से वापिस चले गये । सू० ६०॥ एवं वयासी) न तम०४ नम२४.२ ४शने पछी तमा प्रभुने l ४ह्यु-(सुअक्खाए ते भंते ! णिग्गंथे पावयणे) महन्त ! मापणे! २निन्थ પ્રવચનને ઉપદેશ બહુજ સુંદર–પૂર્વાપરવિરોધરહિત-સર્વોત્કૃષ્ટ થયા છે. (जाव किमंग! पुण एत्तो उत्तरतरं) २ निधन्य अवयनमा सवा ५५ વિષય બાકી રહ્યો નથી જેના ઉપર આપે પ્રકાશ ન નાખે હેય-સારી રીતથી વિવેચન ન કર્યું હોય. આપે તમામે–તમામ એક સાથેજ બહુજ સારી પેઠે મીઠા શબ્દમાં સમજાવી દીધું છે. અમે તે એ ઉપદેશ આજ સુધી સાંભળ્યો નથી. કલ્યાણ તેમજ જીવનમાં ઉપયોગી બધા વિષય આપે કહ્યા छे. त्याहि. (एवं वदित्ता जामेव दिसं पा उन्भूए तामेव दिसं पडिगए) । પ્રકારે પ્રભુની સ્તુતિરૂપમાં કહીને કૃણિક રાજા જે દિશાએથી આવ્યા હતા ते हि॥ २३ ॥छ। यादया गया. (सू. १०)
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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