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________________ ४४२ ओपपातिकत्र करित्ता वंदति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता कूणियरायं पुरओ कट्टु ठिइयाओ चेव सपरिवाराओ अभिमुहाओ विणएणं पंजलिउडाओ पजुवासंति ॥ सू० ५५ ॥ मूलम्-तए णं समणे भगवं महावीरे कूणियस्स रणो भंभसारपुत्तस्य सुभद्दापमुहाणं देवीणं तीसे य महइमहाभगवतो महावीरस्य त्रिकृत्वः आदक्षिणप्रदक्षिणं कुर्वन्ति, कृत्वा वन्दन्ते नमस्यन्ति, वन्दित्वा नमस्यित्वा, 'कूणियरायं पुरओ कटु ठिइयाओ चेव' कूणिकराजं पुरतः कृत्वा स्थिता एव 'सपरिवाराओ' सपरिवाराः-परिजनसमेताः, 'अभिमुहाओ' अभिमुखाः भगवदृष्टिपथे, 'विणएणं पंजलिउडाओ पज्जुवासंति' विनयेन प्राञ्जलिपुटाः कृताञ्जलिपुटाः पर्युपासते ॥ सू० ५५ ॥ 'तए णं' इत्यादि । 'तए णं' ततः द्वादशविधपरिषदुपस्थितिसमनन्तरं खलु 'समणे भगवं महावीरे' श्रमणो भगवान् महावीरः 'कूणियस्स रणो भंभसारपुस्सस्स' कूणिकस्य राज्ञो भंभसारपुत्रस्य 'सुभद्दापमुहाणं देवीणं' सुभद्राप्रमुखाणां देवीनाम्-'तीसे पश्चात् वंदना एवं नमस्कार किया, (वंदित्ता णमंसित्ता कूणियरायं पुरओ कटु ठिइयाओ चेव सपरिवाराओ अभिमुहाओ विणएणं पंजलिउडाओ पज्जुवासंति) वंदना नमस्कार कर चुकने के बाद फिर वे, कूणिक राजा को आगे कर के खड़ी खड़ी विनयपूर्वक हाथ जोड़ कर भगवान की सेवा करने लगीं ॥ सू. ५५ ॥ __ 'तए णं ' इत्यादि। (तए णं) बारह प्रकार के परिषद जम जाने पर (समणे भगवं महावीरे) श्रमण भगवान् महावीर ने (कूणियस्स रण्णो भंभसारपुत्तस्स ) भंभसार अर्थात् श्रेणिक (वंदित्ता णमंसित्ता कूणियरायं पुरओ कट्ट ठिइयाओ चेव सपरिवाराओ अभिमुहाओ विणएणं पंजलिउडाओ पज्जुवासंति) वंदना नम२४।२ ४२री सीधा पछी वणी ते કૃણિક રાજાને આગળ કરીને ઉભી ઉભી વિનયપૂર્વક હાથ જોડીને ભગવાનની सेवा ४२१। al. (सू. ५५) “तए णं" त्याहि. (तए ण) मा२ ४२नी परिष६ १२७ rdi (समणे भगवं महावीरे) श्रम जापान मडावी२ (कूणियस्स रण्णो भंभसारपुत्तस्स ) मनसा२ अर्थात् श्रेष
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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