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________________ ३९० औपपातिकसूत्र तेलमाइएहिं पीणणिजेहिं दप्पणिजेहिं मयणिजेहिं बिहणिज्जेहिं सबिंदियगायपल्हायणिजेहिं अभिगेहिं अभिगिए परिश्रान्तः-अङ्गप्रत्यङ्गापेक्षया, 'सयपाग-सहस्सपागेहिं ' शतपाकसहस्रपाकैः, शतकृत्वः षाको येषु ते शतपाकाः, शतसंख्यकौषधिमिश्रणेन वा पाको येषु ते, शतकार्षापणमूल्यकद्रव्यमिश्रणेन वा पाको येषु ते शतपाकास्तैलविशेषाः, एवं सहस्रपाका अपि, ततस्तयो द्वन्द्वः, तैस्तैलविशेषैः, सुगन्धितैलादिकैः ‘पीणणिज्जेहिं ' प्रीणनीयैः-रसरुधिरादिधातुसुखप्रदैः, 'दप्पणिज्जेहिं' दर्पणीयैः=बलवर्द्धकैः, 'मयणिज्जेहिं' मदनीयैः कामवर्द्धकैः, 'बिहणिजेहिं बृहणीयैः-मांसोपचयकारिभिः, 'सव्विदिय-गाय-पल्हायणिज्जेहिं ' सर्वेन्द्रिय-गात्र-प्रह्लादनीयैः, सर्वेषाम् इन्द्रियाणाम् , गात्राणां प्रह्लादनीयैः--प्रह्लादजनकैः, किया । मल्लों के साथ कुश्तो लडी। वहां पर रखे हुए मुद्गरों को भी फिराया । इन क्रियाओं से वह पहिले साधारण श्रान्त हुए एवं बाद में अधिक परिश्रान्त हुए । इस तरह जब अच्छी रीति से वे खूब व्यायाम कर चुके तब (सयपागसहस्सपागेहिं) उन्हों ने शत *पाकवाले एवं सहस्रपाकवाले तैलों से (पीणणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं) जो तेल प्रीणनीय-रस-रुधिर आदिवर्धक एवं दर्पणीय-बलवर्द्धक होते हैं, ( मयणिज्जेहि ) कामवर्द्धक होते हैं, (बिहणिज्जेहिं) बृहणीय-मांसबढानेवाले होते हैं, ( सव्विंदिय-गाय-पल्हायणिजेहिं) समस्त इन्द्रिय एवं समस्त शरीर को आनन्द देनेवाले होते हैं ऐसे तेलों से तथा (अभिगेहिं) * सौ वार पकाये गये, अथवा सौ प्रकार की औषधियों को मिश्रित कर पकाये गये, अथवा सौ रुपये मूल्यवाली औषधियों को गलाकर पकाये गये ऐसे तैलों से। इसी प्रकार सहस्रपाक में भी समझना चाहिये। સાધારણ થાક્યા, તેમજ ત્યાર પછી વધારે થાક લાગે. આવી રીતે જ્યારે म ४सरत ४३ सीधी त्यारे (सयपागसहस्सपागेहिं) तभणे शत॥४i तभ०४ सहसपा४i atथी ते (पीगणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं) श्री नीय२४ ३धि२ माहि १४ तम वर्षीय- ४ डोय छ, (मयणिज्जेहिं) म१५४ डोय छ, (बिंहणिज्जेहिं) मणीय-भांसवध डोय छे, (सव्विदिय-गाय-पल्हायणिज्जेहिं) समस्त द्रियो तभ०४ समस्त शरीरने सान [૧] સવાર પકાવેલું અથવા સ પ્રકારની ઓષધીઓથી મિશ્રિત કરી પકાવેલું અથવા સો રૂપિયાની કિંમતની ઓષધીઓને ગાળીને પકાવેલ એવાં તેલો. આજ રીતે સહઅપાકમાં પણ સમજવું જોઈએ.
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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