SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४ औपपातिकसूत्रे चूयलयाहि वणलयाहि वासंतियलयाहिं अइमुत्तयलयाहिं कुंदलयाहिं सामलयाहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता ॥ सू. ८॥ ___मूलम्-ताओ णं पउमलयाओ णिचं कुसुमियाओ बहुविधाभिः । 'पउमलयाहिं' पद्मलताभिः । ‘णागलयाहिं'–नागलताभिः । 'असोगलयाहिं' अशोकलताभिः । चंपगलयाहिं ' चम्पकलताभिः, 'चूयलयाहिं' आम्रलताभिः, 'वणलयाहिं' वनलताभिः, 'वासंतियलयाहिं' वासन्तिकलताभिः, 'अइमुत्तयलयाहिं' अतिमुक्तक लताभिः 'कुंदलयाहिं' कुन्दलताभिः। 'सामलयाहिं' श्यामलताभिः, इमाभिर्दशजातीयाभिलताभिः, 'सब्बओ समंता संपरिक्खित्ता' सर्वतः समन्तात्सम्परिक्षिप्ताः-सर्वदिक्षु परितः सम्यक् परिवेष्टिताः ॥ सू० ८॥ 'ताओ णं पउमलयाओ' ताः खलु पद्मलताः-याभिस्तिलकादिनन्दिवृक्षान्ता वृक्षाः परितो वेष्टिताः ता लताः कीदृश्यः ? अत्राह- णिचं कुसुमियाओ' नित्यं प्रकारकी पद्मलताओं से (णागलयाहिं ) नागलताओं से, (चंपगलयाहिं ) चंपकलताओं से, (चूयलयाहिं) आम्र–लताओं से, (वणलयाहिं) वनलताओं से (वासंतियलयाहिं ) वासंतीलताओं से, (अइमुत्तयलयाहिं ) अतिमुक्तलताओं से (कुंदलयाहिं) कुन्दलताओं से और (सामलयाहिं) श्यामलताओं से (सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता) समस्त दिशाओंमें चारों ओर से घिरे हुए थे ॥ सू. ८॥ 'ताओ णं पउमलयाओ' इत्यादि, ये पद्मलता आदि लताएँ कि जिनसे तिलकसे प्रारंभकर नंदिवृक्ष तकके समस्तवृक्ष परिवेष्टित बने हुए थे, वे (णिचं कुसुमियाओ) नित्य प्रफुल्लित पुष्पों से मी मने प्र४२नी पसतासाथी ( णागलयाहिं ) साथी ( चंपगलयाहिं ) तामाथी ( चूयलयाहिं) याप्रदातामाथी (वणलयाहिं ) वनसाथी ( वासंतियलयाहिं ) वासंतीसतायोथी ( अइमुत्तयलयाहिं) मति भुत सतामाथी (कुंदलयाहिं ) सतामाथी मने ( सामलयाहि ) श्यामसतासाथी ( सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता ) समस्त हिशामामा थारे तथी धेशयेतां तi. (सू. ८) " ताओ ण पउमलयाओ" त्याहि, આ પઘલતા આદિ લતાઓ કે જેનાવડે તિલકથી માંડીને નંદિવૃક્ષ सुधीनां समस्त वृक्षो वीरगामे तi ते ( णिच्चं कुसुमियाओ) नित्य
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy