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________________ भगवतीसो - - व्वं जाव अणतखुत्तो' एवं कृतयुग्म कृतयुग्मसंक्षिपञ्चेन्द्रिययुग्मेषु उपपातादारभ्य अनन्त कृत्वः समुत्पन्न पूर्ण इति कथितं तथैव 'सोलससु विवि जुम्मेसु भाणियध्वं जाव अणंत खुनो' षोडशष्वपि द्वितीय कृतयुग्म योज संज्ञिपञ्चन्द्रियत आरभ्य यावत् कल्योजकल्योज संज्ञिपञ्चन्द्रियपर्यन्तेषु युग्मेषु भणितव्य यावद् अनन्त कृत्वः अनन्तशस्तद्रूपेण पूर्व समुत्पना इति पर्यन्तमिति भावः । 'नवरं परिमाणं जहा बेदियाणं' नवरं कृतयुग्म कृतयुग्म संञ्चेन्द्रियाणां यथा द्वीन्द्रियाणां षोडश, संख्याता वा असंख्यातावेति । 'सेसं तहेव' शेषं परिमाणव्यतिरिक्त मुपपातादिकं तथैव-पूर्ववदेव पूर्वोक्त प्रथमयुग्मवदेव प्रथमयुग्मे यत् यथा कथितं तत्सर्व तथैव भाणियन्वं जाव अणंतखुत्तो' इसी प्रकार से 'कृतयुग्म कृतयुग्म संज्ञी पचेन्द्रियों में समस्त प्राणादि जीवों का जैसा उपपात से लेकर अनन्त पार तक का उपपात हो चुकना कहा गया है 'द्वितीय कृतयुग्म योज संज्ञिपंचेन्द्रिय रूप से उनके उपपात को लेकर यावत् कल्योज कल्पोज संज्ञिपंचेन्द्रिय पर्यन्त युग्मों में ये अनन्तवार उत्पन्न हो चुके हैं ऐसा कह लेना चाहिये । 'नवर परिमाणं जहा बेदियाण' द्वीन्द्रिय जीवों का जैसा परिमाण १६ अथवा संख्यातआदि रूप से कहा गया है उसी प्रकार से इन कृतयुग्म कृतयुग्मादि संज्ञिपचेन्द्रिय जीवों का भी परिमाण जानना चाहिये । 'सेसं तहेव' परिमाण से अतिरिक्त उपपात आदि जिस जिस प्रकार से प्रथम युग्म में कहे गये हैं वैसे ही वे सब जानना चाहिये 'सेवं भंते ! सेवं भंते! ति' हे भदन्त ! जैसा आपने यह कहा है वह सब छ, 'एवं सोलससु वि जुम्मेसु भागियब जाव अणंत खुत्तो' मा प्रमाणे કૃતયુમ કૃતયુગ્મ સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિયામાં સઘળા પ્રાણ વિગેરે જીના ઉપપાતથી લઈને અનંતવાર સુધીને ઉપપાત થઈ ચૂક્યું છે, એ કથન સુધી જે રીતે કહેલ છે, એ જ પ્રમાણે બીજા કૃતયુગ્મ એજ સંસિ પંચેન્દ્રિય પણ થી તેના ઉપપાતથી લઈને યાવત્ કલ્યાજ કાજ સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય પર્યંતના ચમોમાં तसा मनतवा२ प य युझ्या छ. तम नये. 'नवर परिमाण जहा बेइ दियाण' में द्रिय कानु परिभा २ प्रभा १६ सो अथ। સંખ્યાત અથવા અસંખ્યાત પણુથી કહેલ છે, એ જ પ્રમાણે આ કૃતયુગમ तयु५ सज्ञी ५'थेन्द्रिय लानु परिभाष्य ५ सभा. 'सेसं तहेब' પરિમાણુ શિવાય ઉત્પાત વિગેરે જે રીતે પહેલા યુગ્મમાં કહેલ છે. તેજ પ્રમાણે તે સઘળું કથન સમજી લેવું. 'सेव भते ! सेव' भंते ! चि' ३ लावन २५ हेवानुप्रिये २ विषयन। શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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