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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ २.४ सू०८ प्र० परमाणुपुद्गलानामल्पबहुत्वम् ८४३ द्रव्यरूपा अर्थाः, प्रदेशविवक्षायाश्चाऽप्रदेशार्था इति-कृत्वा द्रव्यार्था-प्रदेशार्थी स्ते परमाणवः कथ्यन्ते इति । 'संखेज्जपएसोगाढा पोग्गला दव्वयाए संखेज गुणा' संख्येयप्रदेशावगाढाः पुद्गला द्रार्थतया-संख्येयगुणा अधिका भवन्ति -पूर्वपेक्षया-इति । 'ते चेव पएसट्टयाए संखेज्जगुणा' ते-पूर्वोक्ता एव पुद्गलाः प्रदेशार्थतया-प्रदेशरूपार्थविवक्षया पूर्वापेक्षया संख्येयगुगा अधिका भवन्तीति । 'असंखेज्जपएसोगाढा पोग्गला दवट्टयाए असंखेज्जगुगा' असंख्येयप्रदेशावगाढाः पुद्गला द्रव्यार्थतया द्रव्यरूपविवक्षायां पूर्वापेक्षया असंख्येयगुणा अधिका भवन्तीति 'ते चेत्र-पएसट्टयाए संखेज्जगुणा' त एव-पूर्वोक्ता एव पुद्गलाः प्रदेशा धतया पूर्वापेक्षया असंख्येयगुणा:-अधिका भवन्तीति भावः, 'एएसिणं भंते' एतेषां खलु भदन्त ! 'एगपमयटिइयाणं संखेज्मसमयहिइयाणं-असंखेज्जसमय. विविक्षावश परमाणु द्रमार्थ कहे गये होते हैं और प्रदेशों की विव. क्षावश वे अप्रदेशार्थ कहे गये होते हैं। आकाश के एक प्रदेश में अध. गाहनाशील (रहे हुए) ऐसे पुद्गल परमाणु सबसे कम (थोडे) होते हैं। 'संखेज्जपएसोगाढा पोग्गला दबट्टयाए संखेज्जगुणा' इनकी अपेक्षा जो आकाश के संख्यात प्रदेशों में अवगाढ हो सकते हैं ऐसे पुद्गल द्रव्यरूप से संख्यातगुणे अधिक कहे गये हैं । 'ते चेव पएसट्टयाए संखे. जगुणे परन्तु ये ही पुद्गल प्रदेशरूप से पूर्व की अपेक्षा संख्यातगुणें अधिक होते हैं। 'असंखेज्जपएसोगाढा पोग्गला दवट्टयाए असंखेज्ज. गुणा' इनकी अपेक्षा जो पुद्गल असंख्यातप्रदेशावगाही हैं वे द्रव्यदृष्टि से असंख्यातगुणे अधिक कहे गये हैं। 'तं चेव पएसट्टयाए असंखे. ज्जगुणा' परन्तु ये ही पुद्गल स्कन्ध प्रदेशरूप से भी पूर्व की अपेक्षा असंख्यातगुणे अधिक कहे गये हैं। ___'एएसिणं भंते ! एगसमयद्विइया णं संखेज्जसमयहिइयाणं असं. खेज्जसमयहिहयाणं' पोग्गलाणं' हे भदन्त ! एक समय की स्थिति પ્રદેશમાં અવગાહનાવાળા છે. તે સૌથી થોડા છે. પરમાણુ અપ્રદેશી કહેલ છે. 'संखेज्जपएसोगाढा पोग्गला दबयाए संखेज्जगुणा' तेना ४२di मशन सध्यात પ્રદેશમાં જે અવગાઢ હોઈ શકે છે, એવા પુદ્ગલ દ્રવ્યપણુથી સંખ્યાતગણ म४ि-पधारे छ, 'त' चेव पएसटूयाए संखेज्जगुणा' ५२ मा दो। प्रश५॥थी पाना ४२di ज्यात पारे डाय छे. 'असंखेज्जपएसो. गाढा पोग्गला दवट्याए असंखेज्जगुणा' तना ४२di सध्यात अशाही पुरस छ त ०५५थी मसयाताय! मधि: ४ा छ, 'तं चेव पएसदयाए असंखेन्ज गुणा' ५२ पुस २४ । प्रदेशपाथी पर पडi Rai vध्यात पारे । . 'एएसि णं भंते ! एगसमयद्विइयाणं શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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