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________________ ७० भगवतीसूत्रे दिए य फासिदिए य' जिव्हेन्द्रियं च स्पर्शनेन्द्रियं च १३ । 'तिनि समुग्घाया' प्रयः समुद्घाताः वेदनाकषायमारणान्तिका भवन्तीति १४। 'सेसंजहा पुढविक्काइयाण' शेषम्-अवशेष सर्वमपि यथा पृथिवीकायिकानां वेदना वेदाध्यवसायाः कथिताः तत्सर्वमपि तत्सदृशमेवावगन्तव्यमिति। केवलं पूर्वापेक्षया यद्वैलक्षपयं तदर्शयितुमाह-'णवरं' इत्यादि, 'णवरं ठिई जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं' नवरम्-केवलं स्थितिर्जघन्येन अन्तर्मुहूर्त्तम् 'उकोसेणं बारस संबच्छराई' उत्कृ. ष्टतो द्वादशसंवत्सराणि जघन्योत्कृष्टाभ्यां स्थितिः क्रमशोऽन्तर्मुहर्तप्रमाणा द्वादशसंवत्सरप्रमाणा च भवतीति १७ । 'एवं अणुबंधो वि' एवम् स्थितिसदृशइव अनुबन्धोऽपि जघन्येन अंतर्मुहूर्तरूप उत्कृष्टतो द्वादशसंवत्सररूपः, स्थितिस्वरूपत्वादेव अनुबन्धस्येति १९ । 'सेसं तंचेव' शेषम्-यत् स्थितीत्यादिकंसमुग्घाया' समुद्घात द्वार में इनके वेदना, कषाय और मारणान्तिक ये आदि के तीन समुद्घात होते हैं। 'सेसं जहा पुढविकाइयाणं' अव. शिष्ट वेदना, वेद, अध्यवसाय ये जिस प्रकार से पृथिवीकायिकों के कहे गये हैं उसी प्रकार से ये इनके भी जानना चाहिये, अब सूत्रकार पृथिवीकायिक के प्रकरण से इसके प्रकरण में जो विशेषता है उसे प्रकट करते हैं-'णवरं ठिई जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं बारससंबच्छराई' यहाँ जघन्य स्थिति एक अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट से वह १२ वर्ष की है पृथिवीकायिक के प्रकरण में जघन्यस्थिति यद्यपि अन्तर्मुहूर्त की कही गई है अनुबन्ध की स्थिति के अनुसार अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट पारह वर्ष प्रमाण का होता है। अतः इससे उम प्रकरण में और इस प्रकरण में विशेषता होती है इस प्रकार से जब स्थिति में विशेषता है छ. 'तिन्नि समुग्धाया' समुद्धात बारमा मान वहना, ४षाय, भने भारशान्ति र समुद्धात। य छे. 'सेसं जहा पुढवी काइयाणं' मातीनु વેદના, વેદ, અધ્યવસાય એ સ્થાનેના સંબંધનું કથન જે રીતે પૃથ્વિકાયિ કેના સંબંધમાં કહેલ છે, એજ પ્રકારથી તેના સંબંધમાં પણ સમજવું હવે સૂત્રકાર પૃવિકાયિકના પ્રકરણ કરતાં આ પ્રકરણમાં જે વિશેષ पाछे, तेने प्रट रे छ. 'णवर ठिई जहण्णेणे अतोमुहृत्तं उक्कोसेणं बारस संबच्छराई महियां धन्य स्थिति मे मत इतनी छ, म थी તે ૧૨ બાર વર્ષની છે. પ્રવિકાયિકના પ્રકરણમાં જઘન્ય સ્થિતિ છે કે અંતમુહૂની કહેલી છે, પરંતુ ત્યાં ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ ૨૨ બાવીસ હજાર વર્ષની કહી છે. જેથી આ પ્રકરણ કરતાં તે પ્રકરણમાં વિશેષપણું છે. આ રીતે જ્યારે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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