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________________ - - - -- प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.४ सू०६ परमाणुपुद्गलानां संख्येयत्वादिकम् ८११ स्वभावाद्वा अवयविनः स्तोकाः । 'पए सि गं भंते !' एतेषां भदन्त ! 'दुप्पएसिया णं तिप्पएसियाण य खंधाणे दबट्ठयाए कयरे कयरेहितो बहुया'-द्विप्रदे. शिकानां-त्रिप्रदेशिकानां च स्कन्धानामवयविनां द्रव्यार्थतया-द्रव्यस्वरूपेण कतरे कतरेश्यो बहुका:-बहुत्वसंख्यावन्तो भवन्तीति प्रश्नः ? भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि। 'गोयमा' हे गौतम ! 'तिप्पएसिएहिंतो खंधेहितो दुप्पएसिया खंधा दवट्ठयाए बहुया' त्रिमदेशि केभ्यः स्कन्धेभ्यो द्विपदेशिकाः स्कन्धाः द्रव्यार्थतया बहुकाः पूर्वपूर्वस्कन्धापेक्षया-उत्तरोत्तरे स्तोकाः, पूर्वपूर्वे च बहुका भवन्तीति । 'एवं एएणं गमएणं जाव-दसपएसिएहितो खंधेहितो नवपएसिया खंधा बहुया' एवमुपयुक्तक्रमेण एतेन गमकेन पाठक्रमेण यावद्-दशप्रदेशिकस्कन्धेभ्यो दो परमाणु आदि अवयवी स्तोक (थोडे) हैं। तथा-और जो अवयवी हैं वे स्थूल होने से अथवा वस्तुस्वभाव से स्तोक हैं । अथ गौतम. स्वामी ! प्रभुश्री से ऐसा पूछते हैं-'एएसि णं भंते ! दुप्पएसिया ण तिप्पएसियाण य खंधा णं दवट्ठयाए कयरे कयरेरितो पहुया' हे परमदयालु भदन्त ! इन द्विप्रदेशी स्कंधों और त्रिप्रदेशी स्कंधों में द्रव्यरूप से कौन स्कन्ध किस स्कन्ध की अपेक्षा से बहुत संख्यावाले हैं ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! 'तिप्पएसिएहितो खंधेहितो दुप्पएसिया खंधा दवट्टयाए बहुया' त्रिप्रदेशिक स्कन्धों की अपेक्षा विप्रदेशिक स्कन्ध द्रव्यरूप से बहुन संख्यावाले हैं। इस प्रकार पूर्व पूर्व स्कन्धों की अपेक्षा से उत्तरोत्तर स्कन्ध स्तोक (थोडे) है और पूर्व पूर्व के स्कन्ध बहुत हैं एवं एएणं गमएणं जाध दसपएसिएहितो खंधेहितो नवपएसिया खंधा बहुया' इस प्रकार पाठ क्रम द्वारा दश થોડા છે. તથા બીજા જે અવયવી છે, તેઓ ધૂલ હોવાથી અથવા વધુ સ્વભાવથી સ્તક-અપ છે. हवे श्री गौतमस्वामी प्रसुश्रीन से पूछे छे -'एएमि गं भंते ! दुप्पए. सियाणं तिप्पएसियाण य खंधाणं दव्वयाए कयरे कयरेहि तो बहुया' 3 ५२मध्यागु ભગવદ્ આ બે પ્રદેશવાળા સ્કંધ અને ત્રણ પ્રદેશવાળા સ્કધામાં દ્રવ્યપણાથી કયા સ્કંધ કયા સ્કંધની અપેક્ષાથી બહુસંખ્યાત છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभुश्री छ -'गोयमा!' गौतम ! 'तिप्पएसिएहि तो खंधेहि तो दुप्पएसिया खंधा दव्वयाए बहुया' त्रय प्रशवाय २४ । ४२di मे प्रशाणा સ્ક દ્રવ્યપણુથી વધારે સંખ્યાવાળા છે, આ રીતે પહેલા પહેલાના સ્કો કરતાં પછી પછીના કંધે અલ્પ-ડા છે. અને પૂર્વ પૂર્વના કંધે વધારે छ. 'एवं एएणं गमएणं जाव दसपएसिएहितो खंधेहितो नवपएसिया खंधा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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