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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१२ सू०२ अप्कायिके पृथ्वीकायादीनामुत्पत्तिः ५७ णव गमगा भाणियवा' वनस्पतिकायिकानाम् अप्कायिकगमसदृशा नव गमा भणितव्याः, यथा यथा प्रथमादिनवान्ताः नव गमास्तत्तद्रूपेण कथिता स्तत्तत् पकागैत्र वनस्पतिकायिकप्रकरणेऽपि नव गमका वक्तव्या इति । यदत्र पूर्वापेक्षयावैलक्षण्यं तदाह-'नवरं' इत्यादिना विरं जाणासंठिया' नवरम्-केवलम् नाना संस्थिताः, वनस्पतिकायिकानां संस्थानं नानायकारकं भवतीति । 'सरीरोगाहणा पढमएसु पच्छिल्लएमु य विसु गमएम' शरीरावगाहना प्रथमेषु पश्चिमेषु च त्रिषु. गमकेषु 'त्रिषु' इत्यस्य उभयत्र संबन्धात्-प्रथमेषु त्रिषु, पश्चिमेषु त्रिषु चेति गौतम ! वहां पर भी ९गमों की व्यवस्था अप्कायिक के नौ गमों के जैसी ही है, यही बात सूत्रकारने वणस्सहकाइयाणं आउकाइयममसरिता णव गमगा भाणियव्या' इस सूत्र द्वारा प्रदर्शित की है। जिस -जिस प्रकार से प्रथम गम से लेकर ९वे गम तक ९गम जिस-जिस रूप से कहे गये हैं उसी प्रकार से वे सब बनस्पतिकायिक के प्रकरण में भी कहना चाहिये, परन्तु पूर्व गमों की अपेक्षा जो विशेषता वन. स्पतिकायिक के गमों में है वह सूत्रकार 'नयर' आदि पाठ द्वारा कथन करते हैं-'णवरं जाणासंठिया' यहाँ जिस प्रकार से पूर्व गमों में भिन्न-भिन्न प्रकार का नियत आकार प्रकट किया गया है, वैसा आकार यहां नहीं है यहां तो अनियत आकार है, अर्थात् वनस्पतिकायिक जीवों का आकार एक प्रकार का नहीं है किन्तु बह अनेक प्रकार का है, 'सरीरोगाहणा पढमएसु पच्छिल्लएस्सु यतिसु गमएसु. शरीरावगाहना प्रथम के तीनों गमों में और अन्त के तीन તે સંબંધમાં પણ આ ગમેની વ્યવસ્થા અપૂકાયિકના નવ ગમે પ્રમાણેની १ . मे पात सूत्ररे 'वणस्सइकाइयाणं आउकाइयगमसरिसा णव गमगा માળિયદા આ સૂત્ર દ્વારા પ્રગટ કરેલ છે. જે જે પ્રકારથી પહેલા ગમથી લઈને નવમાં ગમ સુધીના ૯ નવ ગમો કહેવામાં આવ્યા છે. એજ રીતે તે તમામ વનસ્પતિકાચિકના પ્રકરણમાં કહેવા જોઈએ. પરંતુ પહેલાના ગમ કરતાં આ વનસ્પતિના ગમેમાં જે જુદાપણુ છે, તે સૂત્રકાર माqdi नीय प्रभाोना सूत्रा ४ छ. 'णवर णाणा संठिया' २ शत પહેલાના ગામોમાં જુદા જુદા પ્રકારને નિશ્ચિત આકાર કહેલ છે તે પ્રમા ને આકાર અહિ તે નથી અહિયાં તે અનિયત આકાર છે. અર્થાત વનસ્પતિ છને આકાર એક પ્રકારને હોતે નથી. પરંતુ त भनेर प्रश्न छे. 'सरीरोगाहणा पढमएसु पच्छिल्लएसु य तिस गमएसुशरीरनी अपान पसाना त्रणे गभामा भने छेक्षा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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