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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.२४ सू०२ सनत्कुमारदेवोत्पत्तिनिरूपणम् ४९३ जाणेज्जा' अौतदेव लक्षण्यम् यत् सनत्कुमारस्थिति संवेधं च भिन्नभिन्नरूपेण स्वस्त्रभवापेक्षया जानीयादिति । 'जाहे य अप्पणा जहन्नकालटिइओ भवई' यदा च आत्मना-स्वयं जघन्यकालस्थितिको भवति 'ताहे तिसु वि गमएसु पंच लेस्साओ आदिल्ला भो कायनाओ' तदा विष्वपि गमकेषु आधाः पश्चलेश्याः कृष्णनीलाद्याः कारयितव्याः त्रिष्वपि गम केषु कृष्णनीलायाः पश्चलेश्या भवनीति ज्ञातव्याः, जघन्यस्थितिकस्तिर्यग्योनिकः सनत्कुमारदेवगतौ समुत्पित्सु जघन्यस्थितिसामान् कृष्णादीनां चतसृणां लेश्यानामन्यतरस्यां परिणतो भूत्वा मरणसमये पद्मलेश्यामासाद्य म्रियते तदनन्तरं सनत्कुमारदेवगतौ समुत्पद्यते यत सणंकुमारठिई संवेहं च जाणेज्जा' सनत्कुमारकी स्थिति और सन: स्कुमार का संवेध अपने भवकी अपेक्षा से सौधर्मस्वर्ग के देव की अपेक्षा भिन्न है ऐसा जानना चाहिये । 'जाहे य अप्पणा जहन्नकाल. द्विहओ भवई' जिस समय वह पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क तिर्यग्गतिक जीव जयन्य कालस्थितिवाला होता है और सनत्कुमारदेवगति में उत्पन्न होने के योग्य होता है 'ताहे तिसु वि गमएलु पंच लेस्सामओ आदि. ल्लाओ कायन्याओ' उस समय आदि के तीनों गमकों में कृष्ण नील कापोततेजोलेश्या और पद्मलेश्या, ये पांच लेश्याएं होती हैं। तात्पर्य इस कथन का ऐसा है कि जघन्यस्थिति वाला तिर्यग्योनिक जीव जो सनत्कुमारदेवगति में उत्पन्न होने के योग्य है जघन्यस्थिति के सामर्थ्य से कृष्ण आदि चार लेश्याओं में से किसी एक लेश्या में परिणत होकरके मरणसमय में पद्मलेश्या को प्राप्त करके मरता है। " सभा. परंतु 'नवरं सणकुमारठिई संवेहच जाणेज्जा' सनमारनी સ્થિતિ અને સનકુમારને કાયસંવેધ પિતાના ભવની અપેક્ષાથી સૌધર્મ २१ पनी अपेक्षाथी गुहा छ. तेम सभा. 'जाहे य अध्पणा जहन्न कालद्विइओ भवई' यारे ते पर्यात सध्यात नी मायुष्यवाणे। तिय"य गति. વાળે જીવ જઘન્ય કાળની રિથતિવાળે થાય છે, અને સનકુમાર દેવગતિમાં .५-- यवान याय हाय छ, 'ताहे तिसु वि गमएसु पंच लेस्साओ आदि. સ્ટા’ તે સમયે આદિના ત્રણે ગામમાં કૃષ્ણ, નીલ, કાપત તેજલેશ્યા. અને પદ્મલેશ્યા એ પાંચ લેસ્થાઓ હોય છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે-જઘન્ય સ્થિતિવાળે તિર્યંચનિક જવ કે જે સનકુમાર દેવ ગતિમાં ઉત્પન થવાને ચગ્ય હોય છે, જઘન્ય સ્થિતિના સામર્થ્યથી કૃષ્ણ વિગેરે ચાર લેશ્યાઓ પૈકી કોઈ એક વેશ્યોમાં પરિણત થઈને મરણ સમયમાં પદ્મશ્યાને શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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