SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 483
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૪૬૮ भगवती सूत्रे तत्रैकं पल्योपमं निर्यसंबन्धि अपरं च पल्पमं देवसंबन्धीति संकलनया पल्योपमद्वयं जघन्यतः कालादेशेन कायसंवेधो भवतीति । तथा-' उक्कोसेणं छप्पलिओमाई' उत्कर्षेण षट्पल्योपमा नि, तत्र त्रीणि पल्योपमानि तिर्यग्भवसंबन्धीनि तथा श्रीण्येव पल्योपमानि देवमवसंबन्धीनि इत्येवं क्रमेण पट्पलपोपमात्मक उत्कृष्टतः कालापेक्षा काय संबेधो भवतीति । 'एवइयं जाव करेज्जा' एतावन्तं कालं यावत कुर्यात् एतावत्कालपर्यन्तं पञ्चेन्द्रियतिर्यग्गतिं सौधर्मदेवगतिं च सेवेत तथा एतावन्तमेव कालं पञ्चेन्द्रियतिर्यग्गतौ सौधर्मदेवगतौ च गमनागमने कुर्यादिति प्रथमो गमः १ | 'सो चेत्र जहन्नकाल डिइएस उचवन्नो' स एत्र असंख्यातवर्षायुष्कसंज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक जीव एव जघन्यकालस्थिति कसौधर्मदेवलोकेषु यदि समुत्पन्नो भवेत् तदा - 'एस चैव वत्तव्यया' एषैव प्रथमगमप्रतिपादितैव वक्तव्यता पल्योपम तिर्यग्भव सम्बन्धी है और दूसरा पल्योपम देव भव सम्बन्धी है। तथा - 'उक्को सेणं छप्पलिओवमाइ उत्कृष्ट से वह कायसंवेध ६ छह पल्योपम का है। इनमें तीन पल्योक्म तिर्यग्भव संबंधी है और ३ तीन पल्पोपम देवभव संबन्धी हैं । इस क्रम से ६ छह पल्योपम कालवाला उत्कृष्ट से यह कायसंवेध हो जाता है 'एवइयं जाव करेज्जा' इस प्रकार वह जीव इतने काल पर्यन्त पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्गति का और सौधर्मदेव गति का सेवन करता है और इतने ही काल तक वह उसमें भ्रमण - गमनागमन करता है। ऐसा प्रथम गम है | 'सो चैव जहन्नकालट्ठिएस उबवन्नो' वही असंख्यातवर्ष की आयुवाला संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव जब जघन्य काल की स्थितिवाले सौधर्म देवलोक में उत्पन्न होने के योग्य होता है तब उस सम्बन्ध में भी 'एस चेव वक्तव्वया' यही प्रथम गम प्रतिपादित वक्तકહ્યો છે. તેમાં એક પત્યેાપમ તિય‘ચભવ સંબધી છે. અને બીજો પલ્યાપમ हेवलव समाधी छे 'उक्कोसेणं छप्पलिओवमाई' उत्कृष्टथी ते अयसवेध ६ छ પલ્યાપમના છે, તેમાં ત્રણ પથૈાપમ દેવભવ સંબ ંધી છે, અને ત્રણ પલ્ટેપમ મનુષ્ય સંબધી છે. આ ક્રમથી ૬ છ પત્યેાપમવાળા ઉત્કૃષ્ટથી આ ક્રાયસ વેધ था लय छे. 'एवइयं जाव करेज्जा' मा रीते ते लव आटा अण सुधी પાંચેન્દ્રિય તિય ચગતિનું અને સૌધમ ધ્રુવ ગતિનું સેવન કરે છે. અને એટલા જ કાળ સુધી તે તેમાં ગમનાગમન કરે છે. એ પ્રમાણે આ પહેલા ગમ છે 'सो चैव जहन्नकाल इएस उववन्तो' असण्यात वर्षांनी आयुष्यवाणी 'ની પ:ચેન્દ્રિય તિય ચ ચૈાનિક જીવ જ્યારે જાન્ય કાળની સ્થિતિવાળા સૌધમ हेवामां उत्पन्न थवाने है योग्य होय छे, त्यारे ते संबंधां 'एस चेत्र बत्तव्वया' આ પહેલા ગમમાં કહેલ કથન પ્રમાણેનું કથન જ કહેવુ. જોઇએ. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy