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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१२ सू०१ पृथ्वी कायिकानामुत्पातनिरूपणम् २१ शेन जघन्येन भवद्वयग्रहणम् उत्कृष्टतोऽसंख्येयभवग्रहणम् , कालादेशेन जघन्यतो द्वे अन्तर्मुहूर्ते उस्कृष्टतोऽसंख्यः कालः, एतावत्कालपर्यन्तं सेवेत तथा एतावत्कालपर्यन्तमेव गमनागमने कुर्यात्, एतदेव सर्वम् ‘एवं चेत्र बत्तव्यया' इति प्रकारणेन ध्वनितम् । सोऽयं कायसंवेध इति द्वितीयो गम:२। ___अथ तृतीय गर्म दर्शयन्नाह-'सो चेत्र उक्कोस' इत्यादि, 'सो चेव उक्कोसकालट्ठिएसु उववन्नो' स एस उत्कृष्ट कालस्थितिकेषूपपन्नः । 'जहन्नेणं बावीसवाससहस्सटिइएसु' जघन्येन द्वाविंशतिवर्ष सहस्रस्थितिकेषु पृथिवीकायिकेषु 'उक्कोसेण वि बाबीसवासहस्सटिइएसु' उत्कर्षेणाऽपि द्वाविंशतिवर्ष सहस्रस्थितिकेषु पृथिवीकायिकेषु समुत्पन्नो भवति 'सेसं तं चेव जाव अणुवं. गौतम ! भव की अपेक्षा वह जघन्य से दो भवों को ग्रहण करने तक और उत्कृष्ट से असंख्यात भवों तक तथा-कोल की अपेक्षा जघन्य से वह दो अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट से असंख्यात काल तक उस गति का सेवन करता है और इतने ही काल तक वह उसमें गमनागमन करता है, यही सघ एवं चेव वत्तव्वया' इस प्रकरण से यहां ध्वनित हुआ है। ऐसा यह द्वितीय गम है। अब सूत्रकार तृतीय गम को दिखलाने के लिये 'सोच्चेव उक्कोस' इत्यादि सूत्र कहते हैं-'सो चेव उक्कोसकालटिइएस्तु उववन्नो' सो वह पृथिवीकायिक जीव उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले पृथिवीकायिक में उत्पन्न होता है तो वह 'जहन्नेणं वावीसवास सहस्सहिहएप्सु उक्कोसेण विषावीसवाससहस्सटिइएप्लु' जघन्य और उत्कृष्ट से २२ हजार वर्ष की स्थितिवाले पृथिवी कायिकों में उत्पन्न होता है, 'सेसं तं चेव' बाकी ભવની અપેક્ષાએ જઘન્યથી તે બે ભને ગ્રહણ કરતાં સુધી અને ઉત્કૃષ્ટથી અસંખ્યાત ભ સુધી તથા કાળની અપેક્ષાએ જઘન્યથી તે બે અંતર્મુહૂર્ત સુધી અને ઉત્કૃષ્ટથી અસંખ્યાત કાળ સુધી તે તેમાં ગમનાગમન કરે છે. આ ज्थन एवं चेव वत्तव्वया' मा ४थनथी माडियां ५३९५ ४२यु छ. माशते આ બીજે ગામ કહ્યો છે. ૨ હવે સૂત્રકાર ત્રીજા ગમનું કથન કરવા માટે નીચે પ્રમાણે સૂત્રપાઠ કહે छे. 'सो चेव उक्कोस' त्यादि सो चेव उक्कोसकालदिइएसु उबवज्जेज्जा' ते पृथ्वी 14 & getળની સ્થિતિવાળા પૃથ્વિકાયિકમાં ઉત્પન્ન થાય છે તે તે જઘન્યથી અને ઉર્ફે थी 'बावीसवाससहस्सद्विइए उकोसेग वि बाबीसवाससहरसदिइएसु' २२ मावीस तर पनी थिति थियायिम 6-4-1 थाय छ. 'सेसं तं શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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