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________________ १६० भगवतीसूत्रे इत्यादि 'गोयमा !' हे गौतम ! 'कप्पोवगवेमाणियदेवेहिनो उवज्जति' कल्पोपपन्नकवैमानिकदेवेभ्य आगत्य पृथिवीकायिकजीवाः समुत्पधन्त 'णो कप्पाईयवेमाणियदेवेहितो उच्चज्जति' नो इल्पातीतवैमानिकदेवेभ्य आगत्योत्पद्यन्ते पृथिवीकायिकजीवानामुत्पत्तिर्यदि वैमानिकदेवेभ्य आगत्य भवति तदा-कल्पोपपन्न कवैमानिकदेवेभ्य एव आगत्य भवति न तु कल्पातीतमा निकदेवेभ्य आगत्य भवतीति भावः । 'जइ कप्पोचगवेमाणियदेवेहितो उववज्जति' यदि कल्पोपनकवैमानिकदेवेभ्य पृथिवीकायिकजीवा उत्पद्यन्ते तदा-कि क्या वे कल्पोपपन्नक वैमानिक देवों से आकर के उत्पन्न होते हैं ? अथवा कल्पातीत वैमानिक देवों से आकर के उत्पन्न होते हैं ? इस प्रश्न के उप्सर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा' हे गौतम ! 'काप्पोवगवेमा. णियदेवेहितो उदयज्जति णो कप्पाईयवेमाणियदेवेहिंतो उथवज्जति' पृथिवीकायिक कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से आकरके उत्पन्न होते हैं, किन्तु कल्पातीत वैमानिक देवों से आकर के उत्पन्न नहीं होते हैं, तात्पर्य इस कथन का यही है कि यदि पृथिवी कायिक में वैमानिक देवों की उत्पत्ति होती हैं तो कल्पोपन्नक वैमानिक देवों से ही आये हुओं की उत्पत्ति होनी है किन्तु कल्पातीत वैमानिक देवों से आये हुओं की उत्पत्ति नहीं होती है, अब पुनः गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'जइ कप्पोवगवेमाणियदेवेदितो उववज्जति' हे भद. न्त ! यदि फल्पोपन्नक वैमानिक देवों से आकर के पृथिवीकायिकों की हितो उअवजति' शुत। ६।५५न्न वैमानि वोभायी भावाने उत्पन्न याय છે? કે કાતીત વૈમાનિક દેવામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रभु छ -'गोयमा ! हे गौतम ! 'कप्पोवगवेमाणियोवेहितो' उववज्जति णो कप्पाईय वेमाणियदे वेहितो! उववज्जति' पृथियि: पोप. પન્નક વૈમાનિક દેશમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે, કલ્પાતીત વૈમાનિક દેવમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થતા નથી. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે-જે પૃશ્વિકા યિક જીવની ઉત્પત્તિ વૈમાનિક દેવે માંથી જ આવીને થાય તે કાલાતીત વૈમાનિક દેવમાંથી આવીને થતી નથી, शथी गौतमस्वामी प्रभुने मे पूछे -'जइ कप्पोवगवेमाणिय देवेहितो उववज्जति' 3 मापन ८५५-न वैमानि माथी मावीन वियिनी त्पत्ति थाय छ, तो शु. 'सोहम्मकप्पोवगवेमाणियदेवे. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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