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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१२ सू०६ नागकुमारेभ्यः समुत्पातादिनि० १५९ नवरं स्थिति काळादेशं च भिन्नतया जानीयात जघन्योत्कृष्टाभ्यां स्थिति तथा जघन्योत्कृष्टाभ्यां सूत्रपदर्शितक्रमेण कालादेशमपि जानीयादिति भावः । अथ वैमानिकेभ्य उत्पादयन्नाह - 'जइ वेमाणिय' इत्यादि, 'जइ वेमाणिय 'देवेहिंतो उनवति' हे भदन्त यदि पृथिवीकायिका जीवा वैमानिक देवेभ्य आगस्योत्पद्यन्ते तदा- 'किं कप्पोव गवेमाणियदे वेडिंतो उनवति' किं कल्पोपपन्नकवैमानिक देवेभ्य आगत्य उत्पद्यन्ते अथवा - ' कप्पाईयवेमाणियदेवेर्हितो उवज्र्ज्जति' कलातीत वैमानिकदेवेभ्य आगत्य उत्पद्यन्ते इति प्रश्नः । भगवानाह 'गोयमा' है । जो ऊपर में सूत्र द्वारा प्रकट की जा चुकी है। अर्थात् असुरकुमारों की अनेक प्रकरण में स्थिति जघन्य से दश हजार वर्ष की और उत्कृष्ट से सातिरेक सागरोपम की कही गई है तथा कायसंवेध भव की अपेक्षा दो भवों को ग्रहण करने रूप और काल की अपेक्षा जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट से २२ हजार वर्ष अधिक साधिक सागरोपम का कहा गया है, पर यहां ऐसा नहीं कहा गया है, यहां तो इससे ये दोनों द्वार भिन्न कहे गये हैं । अतः इन स्थिति और का संवेध से भिन्न और सब द्वारों का कथन असुरकुमार प्रकरण में कहे गये अनुसार ही है ऐसा जानना चाहिये, इसी लिये आठ गमकों के कथन को असुरकुमार प्रकरण के जैसा कहा गया है । यहां गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'जइ वेमाणियदेवे हितो उववज्जति' हे भदन्त ! यदि पृथिवीकायिक वैमानिक देवों से आकर के उत्पन्न होते हैं तो 'किं कप्पोवगवेमाणियदेवेर्हितो उववज्जंति, પાઠથી પ્રગટ કરાઈ ગયેલ છે. અર્થાત્ અસુરકુમારોની સ્થિતિ અનેક પ્રકર રણેામાં જઘન્યથી દસ હજાર વર્ષની અને ઉત્કૃષ્ટથી સાતિરેક સાગરોપમની કહી છે તથા કાયસ વૈધ લવની અપેક્ષાએ એ ભવ ગ્રહણ કરવા રૂપ અને કાળની અપેક્ષાથી જઘન્યથી એક અ ંતર્મુહૂત આધક દસ હજાર વર્ષ અને ઉત્કૃષ્ટથી ૨૨ ખાવીસ હજાર વર્ષ અધિક સાધિક સાગરોપમને કહેલ છે. પણ અહિયાં તે રીતે કહેલ નથી. અહિયાં આ બન્ને દ્વારોનુ કથન આ કથન કરતાં જુદી રીતે કહ્યું છે જેથી આ સ્થિતિદ્વાર અને કાયસ ંવેધ શિવાયના ખીજા બધા દ્વારાનું કથન અસુરકુમારોના પ્રકરણમાં કહ્યા પ્રમાણે જ છે. તેમ સમજવુ, તેથી જે આઠ ગમાનું કથન અસુરકુમારના પ્રકરણ પ્રમાણે છે તે प्रमाणे मधु छे. • हवे गौतमस्वाभी अलुने येवु पुछे छे - 'जह वैमाणियदेवे हितो ! उववज्जंति' हे भगवन् ले पृथ्वी अयि वैभानि हेवामांथी भावीने उत्पन्न थाय है ? तो 'कि कप्पोत्रगवेमाणियदेवेहिंतो उववज्जंति' कप्पाईय वेमाणियदेवे શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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