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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१२ सू०४ पञ्चेन्द्रियजीवानामुत्पत्तिनिरूपणम् १०७ केषुत्पत्तियोग्याः संख्यातवर्षायुष्कसंज्ञिपश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकास्ते एकसमयेनएकस्मिन् समये इत्यर्थः कियन्तः-कियत्संख्यका उत्पद्यन्ते इति प्रश्ना, उत्तरमाह-'एवं जहा' इत्यादि, ‘एवं जहा रयणपभाए उववजनमाणस्स सनिस्स नहेय इह वि' एवं यथा येन प्रकरेण रत्नमभानारकपृथिव्यामुत्पद्यमानस्य संबिपञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकस्य वक्तव्यता कथिता तथैव-तेनैव प्रकारेण इहापि वक्तव्या। पूर्वाऽपेक्षया यद्वैलक्षण्यं तदाह-'णवर" इत्यादि, 'णवरं ओगाहणा जहन्नेग अंगुलस्स असंखेज्जइभाग' नवरम्-केवलम् अवगाहना शरीरस्याङ्शलासंख्येयभागम् 'उक्कोसेणं जोयणसहस्स' उत्कर्षेण योजनसहस्रम् जघन्योत्कृष्टाभ्यामगुलासंख्येयभागयोजनसहस्रममाणा शरीरावगाहना भवतीति । 'सेसं तहेव' शेषम्अवगाहनातिरिक्त तथैव-पूर्वप्रकरणे कथितं परिमाणोत्पादादिकं तदेव ज्ञातव्यम्। पृथिवीकायिकों में उत्पत्ति योग्य वे जीव-संख्यात वर्षायुष्क संजी पश्चन्द्रिय तिर्यश्च वहां एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'एवं जहा रयणप्पभाए उववज्जमाणस्स सन्निस्स तहेव इह वि' 'हे गौतम ! रत्नप्रभा नामकी नारक पृथिवी में उत्पन्न होने योग्य संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च की जैसी वक्तव्यता कही गई है वैसी ही यहां पर भी वह कहनी चाहिये, पर उसकी अपेक्षा जो विशेषता है वह 'णवरं ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जहभागं' इस सूत्रपाठ द्वारा जैसी प्रकट की गई है वैसी ही है अर्थात् यहां शरीर की अवगाहना जघन्य से अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है और 'उकोसेणं जोय. सहस्सं' उत्कृष्ट से वह एक हजार योजन प्रमाण है, 'सेसं तहेव' इस अवगाहना से अतिरिक्त जैसा परिमाण उत्पाद आदि का ઉત્પન્ન થવાને ગ્ય તે જી- સંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા સંજ્ઞી પંચે. ન્દ્રિયતિય ત્યાં એક સમયમાં કેટલા ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્ત२मा प्रभु ४३ छ -एवं जहा रयणप्पभाए' उववज्जमाणस्स सनिस्स तहेव इह वि' है गौतम ! २त्नसा नामनी ना२४ पृथ्वीमा उत्पन्न पाने योग्य સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિય"ચના સબંધમાં જે પ્રમાણેનું કથન કરવામાં આવ્યું છે તેજ પ્રમાણેનું કથન અહિયાં પણ સમજી લેવું. તે કથન કરતાં આ કથनमा २ गुहा या छ, त 'णवरं ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असं खेज्जा भाग" 24सूत्र५४ ॥२ शत युछे ते प्रमोनु छ. अर्थात અહિયાં શરીરની અવગાહના જઘન્યથી આંગળના અસંખ્યાતમાં ભાગ પ્રમાણની छ. म 'उक्कोसेणं जोयणसहस्स' उत्कृष्ट यी त मे M२ यौन प्रमाना छ. 'सेसं तहेव' मा साना शिवाय तथा परिमाए, पात विरेना શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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