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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ०५ सू०१ पुगलस्य वर्णादिवत्वनिरूपणम् ५५९ 'जइ तिफासो' यदि त्रिस्पर्शी द्विपदेशिकस्कन्धस्तदा 'सव्वे सीए देसे निद्धे देसे लुक्खे' सर्वः शीतो, देशः स्निग्धो देशो रूक्षः, शीतस्तु सर्वाशे विद्यते किन्तु एकदेशे स्निग्धता अपरदेशे रूक्षता एवं मिलित्वाऽजयवी द्विपदेशिकस्कन्ध त्रिस्पों भवतीति 'सव्वे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे' सर्वः उष्णो देशः स्निग्धो देशो रूक्षः, औषण्यं तृभयत्रापि अवयवे तिष्ठति किन्तु एकस्मिन् स्निग्धता तदपरावयवे रूक्षतेति मिलित्वा त्रिस्पों भवति द्विपदेशिकः स्कन्धः । 'सब्वे निद्धे देसे सीए देसे उसिणे' सर्वः स्निग्धो देशः शीतो देश उष्णः, स्नि. ग्धता तु उभयत्रापि किन्तु एकस्मिन् शैत्यं तदपरदेशे औषण्यमिति मिलित्वा त्रिस्पर्शी द्विपदेशिकोऽत्रयी स्कन्धः । एवं सम्वे लुक्खे देसे सीए देसे उसिणे' सर्वो रूक्षो, देशः शीतो देश उष्णः, रुक्षता तु सर्वा शे विद्यते एकदेशे शैल्यम् के मध्य में इस प्रकार से अविरोधी दो स्पर्शों वाला द्विप्रदेशी स्कन्ध होता है ऐसा कहकर अप सूत्रकार 'जइ तिफासे' ऐसा प्रकट करते हैं कि यदि वह द्विप्रदेशी स्कन्ध तीन स्पों वाला होता है तो इस प्रकार की पद्धति से वह तीन स्पों वाला हो सकता है 'सम्वे सीए, देसे निद्ध देसे लुक्खे' सर्वांश में वह शीत हो सकता है एक देश में स्निग्ध और दूसरे एकदेश में वह रूक्ष हो सकता है १ 'सव्वे उसिणे, देसे निद्धे देसे लुक्खे' सर्वांश में वह उष्ण हो सकता है एकदेश में स्निग्ध और एक दूसरे देश में वह रूक्ष हो सकता है २ 'लने निद्धे देसे सीए, देसे उसिणे ३, सर्वांश में वह स्निग्ध हो सकता है, एक देश में शीत और दूसरे एक देश में वह उष्ण हो सकता है 'एवं सब्वे लुक्खे, देसे सीए देसे उसिणे' इसी प्रकार से वह सर्वांश में रूक्ष हो सकता है और एकदेश में शीत और दूसरे एक में उष्ण हो सकता है। इस प्रकार से અવિરધી બે સ્પર્શીવાળા બે પ્રદેશી કંધ હોય છે એ પ્રમાણે કહીને હવે सूत्रा२ 'जइ तिकासे' पात ताव छ - ते प्रशवाणा २५ ત્રણ સ્પર્શેવાળા હોય તે નીચે પ્રમાણેની પદ્ધતીથી તે ત્રણ સ્પર્શીવાળા પણ मनी श छे. 'सचे सीए, देसे निद्धे, देसे लुक्खे,' सपशिथी ते 31 શકે છે. એક દેશમાં સિનગ્ધ-ચિકણાપણુ અને બીજા એક દેશમાં તે રૂક્ષ હાઈ शछ १ 'सव्वे उसिणे देसे निद्धे, देसे लुक्खे' सर्वाशथी ते श छे. मे देशमा स्निग्ध मन से भीan RITHI GY 3 श छे. एवं सब्वे लुक्खे देसे सीए देसे उसिणे' या शते शिथी ३६ लाश छे. सन से દેશમાં તે શીત-ઠંડા અને બીજા એક દેશમાં તે ઉષ્ણ હોઈ શકે છે. આ રીતે ૪ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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