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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ०५ सू०१ पुद्गलस्य वर्णादिवत्वनिरूपणम् ५५७ ता है अतः जब ऐसी बात है तो इसमें एक परमाणु कषाय रस वाला हो सकता है और इन दोनों के संयोग से जन्य वह द्विप्रदेशी स्कन्ध भी तिक्त और कषायले रसवाला बन सकता है ३ दुसरा प्रकार 'कदाचित् तिक्त श्व अम्लश्च' ऐसा है इसमें तिक्त रसवाले परमाणु और अम्ल रसवाले परमाणु के संयोग से जन्य वह द्विप्रदेशी स्कन्ध कदाचित् तिक्तरस वाला और अम्लरस वाला भी हो सकता है चौथा प्रकार 'स्थात् तिक्तश्चे मधुरश्च' ऐसा है इसमें विप्रदेशीस्कंध तिक्त भी हो सकती है और मधुर भी हो सकता है यहां तिक्त को प्रधान करके शेष ४ को अप्रधान गौण किया गया है इस प्रकार से यहां द्विसंयोगी रस के ४ भङ्ग हुए हैं तथा जब कटुक रस को प्रधान करके शेष ३ रसों को क्रमशः गौण कर भंग बनाये जाते हैं तब भङ्ग संख्या ३ होती है जैसे 'स्यात् कटुकश्च कषायश्च ५ स्यात् कटुकश्च अम्लश्च मधुरश्च' ७ तथा जय कषाय रस को प्रधान करके और शेष दोनों रसों को गौण करके भंग बनाये जाते हैं तब यहां भंग संख्या २ होती है जैसे 'कषायश्च अम्लश्च ८ कषोयश्च मधुरश्च ९॥ और जब अम्लरस को प्रधान करके और मधुररस को गौण करके भंग बनाये जाते हैं तो वहां एक ही भंग એક પરમાણુ તીખા રસવાળા હોય છે અને બીજા પરમાણુ તુરા રસવાળા હોઈ શકે છે. અને તે બનેના સંગથી થતો તે બે પ્રદેશી સકંધ પણ तीमा मन तु२॥ २सार मन छ. 3 श्री ४२ ४ायित् 'तिक्तश्च अम्लश्च' એ છે. આમાં તીખા રસવાળા પરમાણુના સંગથી થવાવાળા તે બે પ્રદેશી સ્કંધ કઈ વાર તીખા રસવાળા અને ખાટા રસવાળા પણ હોઈ શકે છે. था। ४।२ 'स्यात् तितश्च मधुरश्च' । छे. तभी ते में प्रदेश २४५ તીખા પણ હોઈ શકે છે અને મધુર-મીઠા પણ થઈ શકે છે. અહિયાં તીખાને મુખ્ય બનાવીને બાકીના ૪ ચારને ગણ કરવામાં આવ્યા છે. એ રીતે અહિયાં દ્વિક સંગી રસના ૪ ચાર ભંગ બન્યા છે. તથા જ્યારે કડવા ૨સને મુખ્ય બનાવીને બાકીના ૩ ત્રણ રસોને ક્રમથી ગૌણ કરીને ભંગ मनायाम मावे छे. त्यारे १ त्रयम छ, भ3-'स्यात् कटुकाश्च, कषायश्च५ स्यात् कटुकश्च अम्लश्व६ स्यात् कटुकश्च मधुरश्च न्यारे उपायતરા રસને મુખ્ય બનાવીને બાકીના બને રસોને ગૌણ કરીને ભગો બનાવ. पामा भाव छ. भगानी सध्या २ मे मन छ. म है-'कषायश्च अम्लश्च८ कषायश्च मधुरश्च९' मन स्यारे भन्न-पाटा २सने भुज्य मनावाने શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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