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________________ प्रमेयचन्द्रिका टोका श०२० उ०५ सू०१ पुद्गलस्य वर्णादिमत्वनिरूपणम् ५५५ 'जई' इत्यादि, 'जइ एग गंधे यदि एकगन्धस्तदा 'सिय सुब्मिगंधे सिय दुब्मिगंधे य' स्यात् सुरभिगंधः स्यात् दुरभिगन्धश्च यदि द्वयोः परमाण्वो रेकजातीयक एव गन्धस्तदा समानजातीयकगन्धयुक्तपरमाणुद्वयसकाशात् जायमानो द्विपदेशिकः स्कन्ध एकगन्धवानेव भवति कदाचित् सुरभिगन्धवान् दुरभिगन्धवान् वेति । 'जइ दुगंधे सिय सुभिगंधे य दुमिगंधे य' यदि द्विगन्धो द्विपदेशिकः स्कन्धस्तदा सुरभिगन्धश्च दुरभिगन्धश्च भवति एकस्मिन् अवयवे सुरभिगन्धः तदपरावयवे दुरभिगन्ध इति गन्धद्वययुक्तपरमाणुभ्यां जायमानो द्विप्रदेशिकस्कन्धरूपावयवी गन्धद्वयवान् भवति सुरभिगन्धश्च दुरभिगन्धश्चेति । 'रसेसु जहा बन्नेसु' रसेषु यथा वर्णेषु भङ्गाः कथितास्तथैव ज्ञातव्याः, यदि एकरसस्तदा हैं 'जह एगगंधे सिय सुब्भिगंधे सिय दुहिमगंधे य' यदि वह द्रिप्रदेशी स्कन्ध एकगंध गुगवाला होता है तो कदाचित् वह सुरभिगंधवाला हो सकता है और दुरभिगंध गुणवाला हो सकता है तात्पर्य ऐसा है कि यदि दो परमाणुओं का एक सा ही गन्ध गुण है तो समान जातीय क गन्ध गुण से युक्त परमाणुद्रय से जायमान वह द्विपदेशी स्कन्ध एकगंध वाला ही होता है इस प्रकार से कदाचित् वह सुरभिगंधवाला हो सकता है या कदाचित् वह दुरभिगंधवाला हो सकता है 'जह दुगंधे सिय सुभि. गंधे य दुन्भिगंधे य 'यदि वह दो गंधों वाला है तो एक परमाणु उसका सुरभि गंधवाला और दूसरा परमाणु उसका दूरभिगंध वाला होता है इस प्रकार अपने अवयव भूत दो गंधों वाले दो परमाणुओं से जन्य उस विप्रदेशी स्कन्ध को युगपत् दो गन्धों वाला कहा गया है। 'रसेमु जहा बन्नेसु' रसों में भङ्ग वर्गों के भंग जैसे १० होते हैं ! यदि वह द्विप्रसार सध सभा सग मतापाने। प्रारम ४२ छ-'जइ एग गंधे सिय सभिगंधे सिय दुब्भिगंधे य' on तमे प्रदेश २४ मे घ वाणी હોય તે કદાચિત્ તે સુગંધવાળો હોઈ શકે છે. અને કદાચિત દુધવાળો હોઈ શકે છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે-જે બે પરમાણુઓને એક સરખે જ ગંધ ગુણ હોય તે એક સરખી જાતીના ગંધ ગુણવાળા બે પરમાણુથી થતા તે બે પ્રદેશી અંધ એક જ ગંધવાળા હોય છે. એ રીતે કદાચિત તે સુગંધવાળે હોઈ શકે છે, અથવા કદાચિત્ તે દુર્ગધવાળો હોઈ શકે છે. અને ने-'जइ दुगंवे सिय सुभिगंधेय दुग्भि गंधेय' में आवाजो डाय तो तना પરમાણુ સુગંધવાળા અને બીજો પરમાણુ દુધવાળો હોય છે. આ રીતે પિતાના અવયવ રૂપ બે ગધેવાળા બે પરમાણુઓથી થતા એ બે પ્રદેશી સ્કંધને सीसाथे मे गधा छे. 'रसेसु जहा वण्णेसु' २सेना पनि શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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