SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 404
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३९० भगवती सूत्रे " विपरीतं नारकसूत्रापेक्षयाऽसुरकुमारसूत्रे विपरीतं भणितव्यम् किं विपरीतम् ? इति सूत्रकार एवाह - 'परमा अप्पकम्मा चरमा महाकम्मा' परमा अल्पकर्माणः, चरमा महाकर्माणः, नैरयिकसूत्रे चरमेभ्यः परमाणां महाकर्मादित्वं परमेभ्यश्चरair areasर्मादिवं कथितम् अत्रासुरकुमारसूत्रे च चरमेभ्यः परमाणामल्पकर्मादित्वं परमेभ्यश्चरमाणां च महाकर्मादित्वं वाच्यमिति वैपरीत्यम्, तथाहि'से नूनं भंते ! चरमेहिंतो असुरकुमारेहिंती परमा असुरकुमारा अप्यकम्मतरा aa aafaorat चैव अप्पासवतरा चेव अण्पवेयणतरा चैत्र' इत्यादि । तद् नूनं भदन्त । चरमेभ्योऽसुरकुमारेभ्यः परमा असुरकुमारा अल्पकर्मतरा एव अल्पक्रियतरा एव अल्वाखवत एव अल्पवेदनतरा एवं एवं प्रश्न उत्तरं व ता है वह इस प्रकार से है - 'विवरीयं भाणियन्त्र' नारकसूत्र में जैसा कथन किया गया है उसकी अपेक्षा असुरकुमार सूत्र में विपरीत कथन किया गया है और वह 'परमा अध्यकम्मा, चरमा महाकम्मा' इस सूत्र पाठ से प्रकट किया गया है तात्पर्य कहने का ऐसा है कि नैरधिक सूत्र में चरमों से परमों में महाकर्म आदि से युकता कही गई है तथा परमों से चरमों में अल्पकर्म आदि से युक्तता प्रकट की गई है, परन्तु असुरकुमार सूत्र में चरमों से परमों में अल्पकर्म आदि से युक्तता और परमों से चरमों में महाकर्म आदि युक्तना कही गई है यही बात - ' से नूनं भंते ! चरमेहितो असुरकुमारेहिंतो परमा असुरकुमारा अप्पकम्मतरा चैव अप्प किरियतरा चैत्र अप्पासवतरा चेव अप्पवेयणतरा चेब' इत्यादि सूत्र पाठ बनाकर समझ लेना चाहिये । गौतम ने विशेषता छे, ते या प्रभा छे 'विवरीयं भाणियव्वं' नार सूत्रमां नेवी રીતનું કથન કરવામાં આવ્યુ' છે, તે કથનની અપેક્ષાએ અસુરકુમાર સૂત્રમાં विपरीत अथन डेवामां आव्यु छे, ते उथन 'परमा अप्पकम्मा, चरमा महा મા' આ સૂત્રપાઠથી પ્રગટ કરેલ છે. કહેવાનુ તાત્પ એ છે કે-નૈરયિક સૂત્રમાં ચરમ અ યુબ્યામાંથી પરમાયુષ્ય વાળાઓમાં મહાકમ વિગેરેનુ' હોવાપણુ કહ્યું છે. તેમ જ પરમાયુષ્કાથી ચરમાયુષ્યવાળાએમાં અલ્પમ આદિત્તુ' હોવા પશુ' કહેલ છે. પરંતુ અસુરકુમાર સૂત્રમાં ચરમાયુકાથી પરમાણુકામાં અલ્પ કમ આદિનુ' હોવાપણુ અને પરમાયુષ્કાથી ચરમાણુબ્કામાં મહામ વિગેરેનું डोबायालु उडेल छे, खेन वात 'से नूनं भ'ते ! चरमेहितो! असुरकुमारेहि तो परमा असुरकुमारा अप्पकम्मतरा चेव अत्यकिरियतरा चेव अप्पासवतरा चेव अप्पवेयणतरा चैव' त्यिाहि सूत्रपाठ तावीने समभववामां मायुं छे. गौतम શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy