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________________ प्रमेयखन्द्रिका टीका श०१८ उ ७ सू०३ मद्रुकश्रमणोपासक चरितनिरूपणम् ११५ तानां बहूनां जनानां समुदायः भगवन्तं चन्दते नमस्यति धर्मकथां गृणोति, ततश्चत्रिविधया पर्युपासनया भगवन्तं पर्युपास्ते इति । 'तए णं मददुए समणोवासए ' ततः खलु मद्रुकः श्रमणोपासकः 'इमोसे कहाए लट्ठे समाणे' एतस्याः कथायाः लब्धार्थः सन् ' हट्टतुट्ठ० जाव हियए' हृष्टतुष्ट यावद हृदयः यावत्पदेन चित्तानन्दितः प्रीतिमनाः परमसौमनस्थितो हर्षवशविसर्पद हृदयः' इत्यन्तग्रहणं भवतीति 'व्हाए' स्नातः कृतस्नानः' 'जाव सरीरे' यावच्छरीरः यावत्पदेन 'कयवलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छित्ते अप्पमहग्याभरणालंकिय' इत्यादीनां ग्रहणं भवति ततः कृतबलिकर्मा कृतकौतुकमङ्गलप्रायश्चित्तः अल्पमहार्घा मरणालङ्कृतशरीर इति । एतादृशः सन् ' 'सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ' स्वकीयात् गृहात् प्रतिनिष्क्रा परिषद् प्रभु के पास आयी, आकर के उसने प्रभुको वन्दना की नम स्कार किया प्रभुने धर्मकथा कही सबने उस धर्मकथा को सुनी और सुनने के बाद विविध पर्युपासना से प्रभु की पर्युपासना की 'लए णं मुदुए समणोवास इमी से कहाए लट्ठे समाणे हट्ट० जाव हियए' मदुक श्रावकने जब प्रभु के आगमन का समाचार सुना तो वह हष्टतुष्ट हृदयवाला हुआ प्रीतिमनवाला हुआ, परमसौमनस्थित हुआ । एवं हर्ष से विसर्पत् हृदयवाला हुआ। और उसी समय उसने 'हाए' स्नान किया 'जाव सरीरे' यावत् 'कयबलिकम्मे' बलिकर्म किया वायसादि को अनादि का भाग दिया 'कयको मंगलपायच्छिते' दुःस्वप्नादि निवारण के लिए कौतुकमंगलरूप प्रायश्चित्त किया। 'अध्यमहग्घाभरणालंकिय' और थोडे से भारवाले आभरणों से कि जो बहुत विशेष की કરી નમસ્કાર કર્યો પ્રભુએ ધમકથા કહી સભળાવી પરિષદ્માએ ધમ કથા સાંભળ્યા પછી મન, વચન અને કાય રૂપ ત્રણ પયુ પાસનાથી પ્રભુની पर्युपासना री "तए णं मद्दुर समणोवासए इमीसे कहाए लखट्टे समाणे हट्ट तुठ्ठ० जाव हियए" सदु९ श्रावडे अलुना आगमनना समाचार न्यारे સાંભળ્યાં ત્યારે હષ્ટ–તુષ્ટ હૃદયવાળા થયા પ્રસન્ન મનવાળેા અન્ય અત્યંત સૌમનસ્થિત અન્યા અને હર્ષોંથી પ્રફુલ્લિત હૃદયવાળા થઈ ને તે જ सभये तेथे "व्हाए" स्नान यु " जाव सरीरे" यावत् " कय बलिकम्मे " વાયસ-કાગઢા વિગેરેને અન્નના ભાગ આપવા રૂપમલિકમ કર્યુ “कय कोउयमंगलपाय च्छित्ते दुःस्वप्नाहिना निवाराय भाटे होतुम् भांगण ३५ आयश्चित्त म्यु “अनमहग्घाभरण। लंकियसरीरे" भितमां विशेष भने वनमां इला शेषा आभूषा धारण अर्ध्या भने ते पछी “सयाओ गिहाओ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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