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________________ १४८ सूत्रकृताङ्गसूत्रे छाया-संबुध्यमानस्तु नरो मतिमान् , पापात्वात्मानं निवर्तयेत्।। हिंसाप्रसूतानि दुःखानि मत्वा, वैरानुबन्धीनि महाभयानि ॥२१॥ अन्वयार्थ:--(संबुज्झमाणे मतीमं गरे) संबुध्यमानः-धर्म-भावसमाधि जानानः मतिमान्-शोभनमज्ञावान् नर:-पुरुषः 'पावा उ अप्पाणनिचट्टएग्जा' पापाव प्राणातिपातादिलक्षणात् कर्मण आत्मानं निवर्तयेत् (हिंसप्पसूयाई) हिंसा प्रमतानि-पाणिविराधनादितो जायमानानि कर्माणि (राणुबंधीणि) वैरानुबन्धीनि-भवपरम्परावर्द्धकानि (महन्मयाणि) महाभयानि-महाभयजनकानि (दुदाई) दुखानि-नरकनिगोदादिपरिभ्रमणलक्षणदुःखजनकानि, इति (मत्ता) मत्वाज्ञात्वा आत्मानं पापात् निवर्तयेदिति ॥२१॥ 'संबुज्झमाणे उ' इत्यादि। शब्दार्थ- 'संधुज्झमाणे मतीमं गरे-संधुध्यमानः मतिमान्नरः, धर्म को समझनेवाला बुद्धिमान पुरुष 'पावा उ अप्पाण निवट्टएज्जा-पापा स्वामानं निवर्तयेत्' पापकर्म से अपन की निवृत्तिकरे 'हिंसप्पसूयाईहिंसाप्रस्मृतानि' हिंसासे उत्पन्न होनेवाले कर्म 'वेराणुबंधीणि-वैरानुषंधीनि' वैरउत्पन्न कराते हैं 'महन्भयाई-महाभयानि' वे महाभय. कारक होते हैं 'दुहाई-दुःखानि' नरक निगोदादि परिभ्रमण लक्षणवाले दुःख दायक होते हैं ॥२१॥ ___अन्वयार्थ--भाव समाधि रूप धर्म को जानता हुआ मेधावी पुरुष अपनी आत्मा को पाप से निवृत्त कर ले हिंसा से उत्पन्न होनेवाले कर्म वैर की परम्परा को बढाने वाले महान् भय को उत्पन्न करने वाले और दुःख जनक होते हैं। ऐसा जान कर अपने को पाप से हटा ले ॥२१॥ 'संबुझमाणे उ' त्याह शहाथ-संबुज्झमाणे मतिमं गरे-संबुध्यमानः मतिमान्नरः' यमन सभा. पापा मुद्धिमान ५३५ 'पावा उ अपाण निवट्टएज्जा-पापत्वात्मानं निवर्तयेत्' पा५ ४थी पाताने निवृत्त ४रे 'हिप्पसूयाई-हिंसा प्रसूतानि' डिंसाथी अपन. या में 'वेराणुबंधीणि-वरानुबंधीनि' ३२ ५- ४२२३ छे. 'महब्भयाईमहाभयानि' से ५ सय १२ डाय छे. 'दुहाई-दुःखानि' न२७ निगाह વિગેરે પરિભ્રમણ લક્ષણવાળ દુઃખકારક હોય છે. પર૧ અન્વયાર્થ––ભાવ સમાધિરૂપ ધર્મને જાણનારે મેધાવી પુરૂષ પિતાના આત્માને પાપથી નિવૃત્ત કરે. હિંસાથી થવાવાળા કમ વેરની પરંપરાને વધારનાર મહાન ભયને ઉત્પન્ન કરવાવાળા અને દુઃખ જનક હોય છે. ર૧ श्री सूत्रकृतांग सूत्र : 3
SR No.006307
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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