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________________ काशिका टीका श्रुतस्कंध २ सू. ३ अ. ११ शब्दासक्तिनिषेधः वा 'जाव सुणे' यावत् यथा वा एककान शब्दान् गृणेति 'खुडियं दारियं परिभूत्तमंडियं' क्षुल्लिकाम् - अल्पवयस्कां दारिकाम् – कन्यकाम् परिभुक्कमण्डिताम् परिवारावृताम् 'अलंकियं' अलङ्कृताम् - आभरणादि भूषिताम् 'निबुज्झमाणि पेहाए' नीयमानाम् अश्वादिना दोलादिना वा स्थानान्तरं प्राप्यमाणाम् प्रेक्ष्य-दृष्ट्वा 'एगं वा पुरिसं बहाए नीणिज्जमार्ण' एकं वा पुरुषं वधाय हननाय नीयमानम् - वधस्थानं प्राप्यमाणम् 'पेहाए' प्रेक्ष्य अवलोक्य 'अन्नयराई तहप्पगाराई' अन्यतरान् वा तदन्यान् वा तथाप्रकारान् तथाविधान् 'सद्दाई' शब्दान् श्रोतुमिच्छया 'नो अभिसंधारिजा गमणाए' नो अभिसंधारयेद् - मनसि विचारयेद् गमनाय - गन्तुं - अब फिर भी प्रकारान्तर से अन्य सांसारिक लड़की वगैरह के शशुराल जाने के समय रोदनादि शब्दों या किसी भी पुरुष को वध के लिये ले जाने के समय में उत्पन्न रोदनादि शब्दों को भी जैन मुनि महात्माओं को नहीं सुनना चाहिये यह बतलाते हैं-' से भिक्खू वा भिक्खुणी वा, जाव सुणेइ' वह पूर्वोक्त भिक्षु संयमशील महात्मा और भिक्षुकी साध्वी यावत् यदि वक्ष्यमाण रूपवाले एकैक शब्दों को सुने -'तं जहा खुइडियं दारियं परिभूत्तमंडियं' जैसे कि छोटी सी कमती उमर वाली लड़की को जो कि अपने मातापिता भाइबहन सखीसहेली वगैरह परिवार से घरि हुइ एवं 'अलंकियं' आभरण वलय हारमणि नूपुर कटक कुंडल एरङ्ग नाना प्रकार के भूषणों से अलंकृत है इस प्रकार की छोटी सी लड़की की 'निघुज्झमाणीं पेहाए' डोला महफा पालकी या घोड़े की सवारी के द्वारा दूसरे स्थान में अर्थात् ससुराल वगैरह में ले जाने के समय करुण कन्दन रोदन शब्दों को सुनकर एवं देखकर एवं 'एगं वा पुरिसं वहाए नीणिज्जमाणं पेहाए' एक किसी भी पुरुष को वधस्थान पर मारने के लिये ले जाये जाने के समय में उस पुरुष के या उस के परिवार मातापिता स्त्री बालक बालिका वगै હવે કન્યા વિગેરે સાસરે જતાં રડવાના શબ્દને અથવા પુરૂષને વધ માટે લઇજवाना होय तेवा समये थता रोहनाहि शण्होने न सांभया विषे उन रे - ' से भिक्ख या भिक्खुणी वा' ते पूर्वोक्त संयमशील साधु मने साध्वी 'जाव सुणेइ' ले वक्ष्यमा प्रहारना खे! ये! शम्होने सांभणे 'तं जहा' नेवा - 'खुडियं दारियं परिभुत्त मंडियं' नानी ઉમરવાળી કન્યા કે જે પેાતાના મા બાપ ભાઈ બહેન સ` સાહેલી વગેરેથી ઘેરાયેલ हाय तथा 'अलंकिय' आभूषण हार यूडी भागी, नूयूरडा डुडो मेरिंग विगेरेमने४ अहारना असं धरोथी असत उन्याने 'निबुज्झमाणि पेहाए' २थ है भाई। अथवा पाणी અથવા ઘેાડાની સવારી દ્વારા બીજા સ્થળે અર્થાત્ સાસરે વિગેરેમાં લઇ જવાના સમયે કરૂણા જનક रोहन ना होने सांभणीने अथवा लेने तथा 'एग वा पुरिसं' अध पुषने 'बहाए नीणिज्जमाणं पेहाए भारया भाटे वधस्थान पर स भवाना सभये ते પુરૂષના અથવા તેના પરિવાર માતા પિતા સ્ત્રી ખાળક। વિગેરેના દીનતા વાળા શબ્દોને શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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