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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. १ सू. २ अ. १० उच्चारप्रस्रवणविधेनिरूपणम् ८८३ भिक्षुकी का ‘से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा' स-संयमवान् साधुः यत् पुनः स्थण्डिलं जानीगत् 'तिगाणि वा चउक्काणि वा' त्रिकाणि वा-त्रिपथरूपाणि, चतुष्काणि वा-चतुष्पथरूपाणि चच्चराणि वा' चत्वराणि वा 'चउम्मुहाणि वा' चतुर्मुखानि वा 'अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि' अन्यतरस्मिन्-एतदन्यस्मिन् वा तथाप्रकारे त्रिकचतुष्कादि पथस्थाने स्थण्डिले 'नो उच्चारपासवणं' नो उच्चारप्रस्रवणम्-मलमूत्रपरित्यागं 'वोसिरिजा' व्युत्सृजेत्-कुर्यात् एवं साध्वी 'से पुण एवं जाणिज्जा' जो इस प्रकार की स्थण्डिलभूमी को जाने कि यह स्थण्डिलभूमी 'तिगाणि वा' त्रिपथरूप तीन तरफ जाने का मार्ग है अर्थातू तेवटी है या 'चउक्काणि वा' चतुष्क चतुष्पथरूप चौतरफ जाने का मार्ग है अर्थात् चौवट्टी है या 'चच्चराणि वा' चत्वर चौराहा है या 'चउम्मुहाणि वा' चर्तुमुख याने चारों तरफ मुखवाला स्थान विशेष है ऐसा जानले या देख ले तो 'अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि धंडिलंसि' इस प्रकार के त्रिक चतुष्क वगैरह तेवट्टी चौवट्टी वगेरह स्थानों से सम्बद्ध स्थण्डिलभूमी में साधु और साध्वी को 'नो उच्चारपास. वर्ण वोसिरिजा' मलमूत्र को त्याग नहीं करना चाहिये क्योंकि इस प्रकार के सार्वजनिक चौराहा वगैरह मार्ग से सम्बद्ध स्थण्डिलभूमी में मूत्रपुरीषोत्सर्ग करने से संयम और आत्मा की विराधना होगी क्योंकि इस तरह के चौराहे वगैरह वगैरहमार्ग से युक्त स्थण्डिलभूमी में मलमूत्र का त्याग करने से संयमशील साधु और साध्वी के प्रति गृहस्थ श्रावको की आस्था या श्रद्धा हट जायगी और उन जैन मुनि महात्माओं के प्रवचन के प्रति आदर नहीं होगा इसलिये इस तरह के रास्तों से सम्बद्ध स्थण्डिलभूमी में मलमूत्र का त्याग करने से संयम और आत्मा की विराधना होगी इसलिये संयम का परिपालन करने वाले और आत्मा का भूवना त्या ४२वान निषेध मताचे छ.-'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' ते पूरित सयम. शार साधु २५॥२ साली 'से जं पुण एवं जाणिज्जा' ले निम्नात प्रा२नी २० सि. सुभाने nd 20 स्थसमूभी 'तिगाणि वा' विभाग अथवा १ त२५ पाना भास सभी छे अथवा 'चउक्काणि वा' यतु५५ ३५ यारे त२३४वानी भाग मेटले यौवट्टी छ अथवा 'चच्चराणि वा' यत्१२ छ. अथवा 'चउम्मुहाणि वा' यारे मा भुमा स्थान विशेष छे. सम onegla अथवा नसता 'अन्नयर सि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि' मारीतना यितु, विगेरे स्थानानी वाणी स्थ सभूमीमा साधु सने सावीये 'नो उच्चार. पासवणं वोसिरिज्जा' भतभूना त्या ५२व नही. भ. मा नासान કે ચાર માર્ગના સંબંધવાળા સ્થાનમાં મલમૂત્રને ત્યાગ કરવાથી સંયમ અને આત્માની વિરાધના થાય છે કેમકે આ પ્રકારના સાર્વજનિક ચૌરાટા વગેરે માગના સંબંધ વાળી ઈંડિલભૂમીમાં મલમૂત્રનો ત્યાગ કરવાથી સંયમ અને આત્માની વિરાધનાથાય છે. કેમકે આ રીતના ચાર માર્ગ વિગેરેથી યુક્ત સ્થંડિલભૂમીમાં મળમૂત્રને ત્યાગ કરવાથી સાધુ અને સાધ્વી પ્રત્યે ગૃહસ્થ શ્રાવકેની આસ્થા કે શ્રદ્ધામાં ખામી આવે અને તેથી એ સાધુ श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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