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________________ ८८२ आचारांगसत्रे पासवणं वोसिरिन्जा' नो उच्चारप्रस्रवणं-मलमूत्रपरित्यागं ब्युत्मजेत-कुर्यात्-'से भिवखू वा भिक्खुणी वा' स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा 'से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा' स यत् पुनः स्थण्डिलं जानीयात्-'अट्टालियाणि वा चरियाणि वा' अट्टालिका वा-प्रासादहम्योपरितनभागान् , चरिकाणि वा-राजमार्ग वा दाराणि वा' द्वाराणि वा गृहद्वाररूपाणि 'गोपुराणि वा' गोपुराणि वा-पुरद्वाररूपाणि 'अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि' अन्यतरस्मिन् वा अन्य स्मिन् वा तथाप्रकारे--अट्टालिकादौ स्थण्डिले 'नो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा' नो उच्चारप्रस्रवणम्-मलमूत्रपरित्यागं व्युत्सृजेत्-कुर्यात, ‘से भिक्खू वा भिक्खुणी वा स भिक्षु और साध्वी को इस तरह के देव मन्दिर वगैरह से सम्बद्ध स्थण्डिलभूमी में मलमूत्र का त्याग नहीं करना चाहिये। अब फिर भी दूसरे ढंग से राजमार्ग अटारी वगैरह के पास बनाये हुए स्थण्डिलभूमी में मलमूत्र त्याग करने का निषेध करते हैं 'से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा, से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा'-वह पूर्वोक्त भिक्षु-संयमशील साधु और भिक्षुकी साध्वी यदि ऐसा वक्ष्यमाण रूप से स्थण्डिलभूमी को जान ले किइस स्थण्डिलभूमी के पास 'अट्टालियाणि वा चरियाणि वा' अटारी अर्थात् प्रासाद या महल के ऊपर के भाग में स्थण्डिलभूमी हो, अगर राजमार्ग के पास की स्थण्डिलभूमी हो अथवा 'दाराणि वा' घर के द्वार समीप की स्थंडिलभूमि हो अगर तो 'गोपुराणि वा' नगर द्वार समीप की स्थण्डिलभूमी हो 'अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि । उस प्रकार के अन्य स्थानों में स्थण्डिलभूमी हो तो संयमी मुनिको उस प्रकार के स्थान में 'नो उच्चारपासवणं वोसिरिजा' उच्चारप्रस्रवण अर्थात् मलमूत्र का परीत्याग नहीं करें। पुन: प्रकारान्तर से तोनमार्गादि से सम्बद्ध स्थण्डिलभूमी में मलमूत्र त्याग करने का निषेध करते हैं-'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' पूर्वोक्त संयमशील साधु હવે રાજમાર્ગ અટારી વિગેરેની પાસે બનાવેલી થંડલભૂમીમાં મલમૂત્રના ત્યાગને निषध ४२ छ- से भिक्ख वा भिक्खुणी वा' ते पति सयभशा साधु भने सानी से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा' ने मेवा १२थी स्थ उayमीन -20 २५ डिसमूभीनी पासे 'अट्टालियाणि वा चरियाणि वा' मटारी थेट प्रासा भवन ५२न माम मावेस સ્પંડિલભૂમી હોય અથવા રાજમાર્ગના પાસેની સ્પંડિલભૂમિ હોય અથવા “તારા િવત’ ઘરના ४२वान स्थातिभूमी डाय 2424। 'गोपुराणि वा' नगरना ४२वानी सभीपनी २५ डिससूभीडीय 'अन्नांसि वा तहापगारंसि थंडिलंसि' मा ५२ना मन्य स्थानमा स्थाडिसमूभी हाय त सयभी भुनिये तेवप्रा२न। स्थानमा 'नो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा' २॥२પ્રસવણ અર્થાત્ મલમૂત્રને ત્યાગ કરે નહીં. ફરીથી પ્રકારાન્તરથી ત્રણ માર્ગ કે ચાર માર્ગના સંબંધવાળી સ્થડિલભૂમીમાં મલ श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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