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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ अ. ९ सू. १ स्वाध्यायभूमावावरणीयानाचरणीयविधिः ८५५ वापि नो कुर्युः 'एयं खलु तस्स भिक्खुस्स भिक्खुणीए वा सामग्गियं' एतत् खलु संयम पालनं तस्य भिक्षुकस्य भिक्षुक्या वा सामग्र्यम्-समग्राचारः सम्पूर्ण आचारो बोध्यः 'जं सबढेहिं सहिए समिए पया जाइज्जा' यत् सर्वार्थ:-सम्यग्ज्ञानदर्शनचारित्रैः सहितः समितः पञ्चभिः समितिभिः समन्वितात्रि गुप्ति भिश्च सहितो भूत्वा सदा-सदा यावदायुस्तावसंयमानुष्ठाने यतेत यतनापूर्वकं वर्तेत इत्यर्थः 'सेयमिणं मन्निजासि' श्रेयः इदम्- एतदेव कल्याणमिति मन्येत 'त्तिबेमि' इति ब्रवीमि-कथयामि उ पदिशामीत्यर्थः 'मिसीहियास त्तिकयं समत्तं' निषोधिकासप्तिका समाप्ता। नवमम् अध्ययनं समाप्तम् ।। सू० १॥ होगी, औ ब्रह्मचर्य का पालन नहीं होने से संयम की विराधना होगी इसलिये दन्तच्छेदादि साधुओं को परस्पर नहीं करना चाहिये, अब नवम अध्ययन की बक्तव्यता का उपसंहार करते हुए कहते हैं कि-यहो अर्थात् 'एयं खलु तस्स भिक्खुस्स भिक्खुणीए वा सामग्गिय संयम का पालन करना ही साधु और साध्वी का परम आचार है या साधुता की पूर्णता है अर्थात् सामाचारी है 'जं सव्वद्वेहिं सहिए समिए' जिस को सर्वार्थों से अर्थात सम्यकज्ञान सम्यकुदर्शन और सम्यक् चारित्र से युक्त होकर और पांच समितियों से भी युक्त होकर तथा तीन गुप्तियों से सम्पन्न होकर 'सया जइज्जा' सदा सर्वदा यतनापूर्वक वर्तना चाहिये क्यों कि आगम में कहा भी है कि-यावत् आयु हो तावत् काल पर्यन्त संयम का अनुष्ठान करना चाहिये 'सेयमिणं ममिजासि त्तिबेमि' इसलिये साधु मुनि महात्माओं का जीवन पर्यन्त ही संयम का अच्छीतरह से पालन करने के लिये ध्यान रखना चाहिये, ऐसा वीतराग भगवान् श्रीमहावीरस्वामी ने गौतमादि गणधरों को उपदेश दिया है यह सुधर्मास्वामी कहते हैं कि-यही श्रेय या कल्याण है अर्थात् अच्छी तरह से संयम का पालन કામદીપનથી બ્રહ્મચર્યામાં બાધા આવે છે. તેમજ બ્રહ્મચર્યનું પાલન ન થવાથી સંયમની વિરાધના થાય છે. તેથી સાધુઓએ પરસ્પર દંત છેદાદિક કરવા નહીં. हवे नवमा ५ध्ययननी १तव्यताने। 6५ हा२ ४२i सूत्रा२ ४ छ ?-‘एवं खलु तस्स भिक्खुस्स भिक्खुणीए वा सामग्गिय' मा सयमनु पाउन २४ याशील साधु सने सापान उत्तम माया२ छे, मने साधुतानी । छे. अर्थात् सामायारी छ. 'जं सव्व वहिं सहिए समिए सया जइज्जा' रे साथ थी सारे अर्थात् सभ्यशान, सभ्य દશન, અને સમ્યફ ચારિત્રથી યુક્ત થઈને તથા પાંચ સમિતિ અને ત્રણ ગુણિયોથી પણ યુક્ત થઈને યતનાપૂર્વક વર્તવું, કેમકે આગમમાં કહ્યું છે કે વાવત્ કાળ આયુ શેષ હોય તાવ, કાળ પર્યત સંયમનું અનુષ્ઠાન કરવું જોઈએ. તેથી સાધુ મુનિએ જીવન પર્યન્ત સંયમનું દ્રઢતા પૂર્વક પાલન કરવું આ પ્રમ ણે વીતરાગ ભગવાન મહાવીર સ્વામી બે ગૌતમાદિ गणपने ५हेश मापेर छ, २॥ प्रमाण सुधा स्वामी हे छ- 'सेयमिणं मन्निज्जासि श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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