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________________ ८३२ आचारांगले अपितु 'अण्णेसि च उग्गहे उग्गहिए उल्लिस्सामि' अन्येषाश्च साधूनाम् अवग्रहे अवगृहीते एवं उपालयिष्ये-वत्स्यामि 'चउत्था पडिमा' इति चतुर्थी प्रतिमा बोध्या 'अहावरा पंचमा पडिमा'-अथापरा पञ्चमी प्रतिमा-प्रतिज्ञा प्ररूप्यते-'जस्सणं भिक्खुस्स एवं भवई'-यस्य खलु भिक्षुकस्य एवं मनसि विचारो भवति-'अहं च खलु अप्पणो अहाए उग्गहं च उग्गि हिस्सामि' अहं च खलु अवग्रहयाचको भिक्षुः आत्मनः अर्थाय-स्वनिमित्तम् अवग्रहच अवग्रहीष्यामि नो अन्यायमित्याह-'नो दुण्डं नो तिण्हं नो चउण्हं नो पंचण्हं' नो द्वयोमिक्षुकयोः नो वा त्रयाणां भिक्षुकाणां वा कृते अवग्रहम् अवग्रहीष्यामि अपितु स्वनिमित्तमेवेति भावः 'पंचमा पडिमा' इति पञ्चमी प्रतिमा बोध्या, 'अहावरा छट्ठा पडिमा'-अथ अपरा षष्ठी प्रतिमा प्ररूप्यते-'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' स भिक्षुको वा भिक्षुकी वा 'जस्स एव क्षेत्रावग्रह की याचना नहीं करूंगा और 'अन्नेसिं च उग्गहे उग्गहिए' दूसरे साधुओं के अवगृहीत अवग्रह में 'उचल्लिस्सामि' वसूगा, अर्थात् दूसरे साधु के द्वारा काल क्षेत्र के लिये याचना करके गृहोत अवग्रह में ही निवास करूंगा, 'चउत्था पडिमा' यह चौथी प्रतिमा रूप प्रतिज्ञा अर्थातू अभिग्रह समझना चाहिये। अब पांचवीं प्रतिमा रूप प्रतिज्ञा का स्वरूप बतलाते हैं-'अहावरा पंचमा पडिमा'-अब अन्य पांचवीं प्रतिमा का स्वरूप कहते हैं कि-'जस्सणं भिक्खुस्स एवं भवर' जिम भिक्ष-संयमशील साधु को इस प्रकार का वक्ष्यमाण रूप से मनमें विचार होता है कि 'अहंच खलु अपणो अट्ठाए उग्गहं' में अपने लिये ही अव. ग्रह अर्थात काल क्षेत्र विषय की याचना 'उग्गिहिस्सामि' करूंगा किन्तु 'नो दुहं नो तिण्हं नो चउण्हं' दो साधुओं के लिये या तीन साधुओं के लिये या चार साधुओं के लिये या 'नो पंचण्हं' पांच साधुओं के लिये अभिग्रह अर्थात् काल क्षेत्र विषय की याचना नहीं करूंगा 'पंचमा पडिमा' यह पांचवीं प्रतिमा रूप प्रतिज्ञा समझनी चाहिये। 'नो उग्गहं उग्गिहिस्सामि' ४री नही मने 'अण्णेसि च उग्गहे उग्गहिए उल्लिरसामि' બીજા સાધુઓએ ગ્રડણ કરેલ અવગ્રહમાં વાસ કરીશ. અર્થાત્ બોજા સાધુઓએ કાલ क्षेत्र भाट यायना अश२ अडए २ अपडमा निवास उरीस. 'चउत्था पडिमा' मा ચેથી પ્રતિમા રૂપ પ્રતિજ્ઞા અર્થાત્ અભિગ્રહ સમજવો. હવે પાંચમી પ્રતિમા રૂપ પ્રતિજ્ઞાનું સ્વરૂપ બતાવવામાં આવે છે. 'अहावरा पंचमा पडिमा' वे पायभी प्रतिभानु २१३५ ४ छ. 'जस्स णं भिक्खुम्स एवं भवई' रे साधुने मापा ५४।२।। मनमा पिया२ मा -'अहं च खलु अप्पणो अदाए उगाह च ग्गिहिस्मामि' हुं मारे माटे ४ २५१ मर्यात क्षेत्रन यायना ४रीश परतु 'नो दुण्ह' में साधुमे। भाट 'नो तिण्हं' मया साधुसे। भाट 'नो चउण्ह' म। यार साधुमे। भाटे 'नो पंचण्ह' ५५॥ पांय साधुस। माटे मनियर मथ। क्षेत्र समधी यायनाशश नही 'पंचमा पडिमा' 4 पायभी प्रतिभा३५ प्रतिशत समन्वी श्री मायारागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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