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________________ आचारांगसूत्रे बा एतदन्यतमरूपाः स्युः 'तेण ते साहम्मिए अन्नसंभोइए समणुन्ने उवनिमंतिज्जा' तेनपीठफलकादिना उपकरणविशेषेणैव तान् साधर्मिकान् अन्यसांभोगिकान् समनोज्ञान् उपनिमन्त्रयेत् - सत्कुर्यात्, तैः सह अशनपानादि व्यवहाराभावात् केवलं पीठफलकादिनैव अतिथिसत्कारं कुर्यादितिभावः 'नो चेवणं परवडियाए ओगिज्झिय ओगिज्झिय उवनिमंतिज्जा' नो चैव खलु - नैव किल परप्रत्ययेन - अन्यसाध्वानीतेन पीठफलकादिना अवगृह्य अवगृह्यअत्यन्तमपेक्ष्य उपनिमन्त्रयेदिति भावः, एतावता अन्यसांभोगिकान् साधून पीठफलकादिनैवोपनिमन्त्रयेद नो अशनादिभिः, यतस्तेषां पीठकादिकमेव संभोग्यं नतु अशनादीति फलितम्, एवं ' से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' स भिक्षुत्र भिक्षुकी वा 'आगंतागारेसु वा ' आगन्त्रगारेषु वा धर्मशालादिषु 'आरामागारेषु वा' आरामागारेषु बा - उद्यानस्थिताश्रमगृहेषु ar' स्वयं पीढ फल आसन शय्या संधरा वगैरह की याचना कर 'तेणते साहम्मिए' सत्कार करना चाहिये क्योंकि उन अन्यतीर्थिक साधु महात्माओं के साथ भोजनादि व्यवहार नहीं होने से केवल स्वयं लाकर पीठ फलक आसन वगैरह के द्वारा ही उन आगन्तुक अन्यतीर्थिक साधु महात्माओं का सत्कार करे किन्तु अन्य साधु के द्वारा लाये हुए पीठ फलकादि से सत्कार नहीं करें, एताबता अन्य सांभोगिक साधु महात्माओं का पीठ फलकादि से ही सत्कार करना चाहिये अशनपानादि के द्वारा सत्कार नहीं करना चाहिये क्योंकि उन अभ्य तीर्थक सांभोग साधु महात्माओं के लिये पीठ फलकादि से सत्कार ही योग्य समझा जाता है अशनपानादि नहीं योग्य समझा जाता है इसलिये केवल पीठ फलकादि से ही उन सभोगिक अन्यतीर्थिक साधु महात्माओं का सत्कार करें | अब द्रव्यावग्रह विशेष का निरूपण करते हैं 'से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा, आगंतागारे वा, आरामागारे वा गाहाइकु लेख वा परियावसथेसु वा' वह पूर्वोक्त भिक्षु संयमशील साधु और ET सज्जा वा संथारए वा' थी इस आसन शय्या सधारा विगेरेनी यायना पुरीने हर सत्कार ४२। 'तेण ते साहम्मिए अन्नसंभोइए समणुम्ने उजनिमंतिज्जा' डेभ यो મન્યતીર્થિક સાધુ મહાત્માઓની સાથે ભાજનાદિ વ્યવહાર ન હેાવાથી કેવળ પેાતે લાવેલ પીઠ ફલક આસન વગેરેથી એ આગન્તુક અન્યતીથિ ક સાધુએને સત્કાર કરવા. परंतु 'नो वेणं परवडियाए ओगिज्झिय ओगिज्झिय उवनिमंतिज्जा' अर्थ मीनयोसे લાવેલ પીઠ લક વિગેરેથી સત્કાર કરવા નહી'. કહેવાના ભાવ એ છે કે અન્ય કિસાધુઓના પીઠફલકાદિથી સત્કાર કરવા પણ અશનપાનાદિથી સત્કાર કરવા નહી' કેમકે એ સાધુ મહાત્માએ માટે પીઠ ફલકાદી જ ચેગ્ય સત્કાર મનાય છે. અશન પાનાદિ વૈશ્ય મનાતા નથી, તેથી કેવળ પીઠ ફલકાર્દિથી જ એ સાંભૈગિક અન્ય તીર્થિક સાધુઆત્મા સત્કાર કરવા, हुवे द्रव्यावथड विशेषतुं निउपाय उरवामां आवे छे. 'से भिक्खू वा भिक्खुणी बा' ७९० શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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