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________________ ७५२ me आचारांगसूत्रे प्रतिमासु इयं वक्ष्यप्राणस्वरूपा प्रथमा-आद्या, प्रतिमा-प्रतिज्ञा पात्रैषणा बोध्या-'से भिक्खू वा भिक्खुशी वा' स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा 'उद्दिसिय उद्दिसिय पायं जाएज्जा' उद्दिश्य उद्दिश्य पूर्वमेव हृदिविचार्य विचार्य पात्रं याचेत 'तं जहा-भलाउयपायं वा' आळाबूपात्रं वा-तुम्बीरूपं पात्रम् 'दारुपायं वा मट्टियापायं वा' दारुपात्रं वा-काष्ठविशेषपात्रम्, मृत्तिकापात्रं वा-मृत्तिकामयपात्रं वा 'तहप्पगारं पायं सयं वा णं जाइना' तथाप्रकारम्-तथाविधम्-अलाबूदारुमृत्तिकामयान्यतमं पात्रं स्वयं वा खलु साधुः याचेत, 'परो वा से दिज्जा' परो वा गृहस्थः तस्मै साधवे दद्यात 'जाव पडि गाहिज्जा' यावत्-तथाविधं पात्रम् प्रासुकम् अचित्तम् एषणीयम् आधाकर्मादि दोषरहितं मन्यमानः प्रतिग्रहीयादिति 'पढमा पडिमा' प्रथमा प्रतिमा-पात्रैषणा रूपा प्रतिज्ञा बोध्या। अथ द्वितीयां पात्रैषणामाह-'पहावरा दोच्चा पडिमा' अथ-अनन्तरम् द्वितीया प्रतिमाखलु' उन चारों प्रतिज्ञा रूप पात्रैषणाओं में 'इमा पढमा पडिमा' अभी कही जाने वाली पहली प्रतिज्ञा है जैसे की-'से भिक्खू वा भिक्खुणि वा' वह भिक्षुसंयमवान् साधु और भिक्षुकी साध्वी 'उद्दिसिय उद्दिसिय' पहले ही मन में बार बार शोच विचार करके 'पायं जाएजा तं जहा' पात्र की याचना करे जैसे कि तुम्बीरूप 'आलावुयपायं वा' आलाबु का पात्र हो या 'दारुपायं वा दारु रूप काष्ठ विशेष का पात्र हो या 'मट्टीयापायं वा' मिट्टी का पात्र हो 'तहप्पगारं पायं इस प्रकार के तुम्बी वगैरह के पात्र को 'सयं वा गं जाइजा' स्वयं साधु और साध्वी याचना करे अथवा 'परो वा से दिज्जा' पर गृहस्थ श्रावक ही उस साधु को दे देवे, और 'जाव पडिगाहिज्जा' यावत्-इस प्रकार के आलाबू वगैरह के पात्र को प्रामुक-अचित्त तथा एषणीय-आधकर्मादि दोषों से रहित समझते हुए ग्रहण करले, यह 'पढमा पडिमा' पहली पात्रैषणारूप प्रतिमा-प्रतिज्ञा समझनी चाहिये, __ अब द्वितीय पात्रैषणा रूप प्रतिमा-प्रतिज्ञा को बतलाते हैंपात्रषामामा मायामा भावनारी पडसी प्रतिज्ञा ॥ प्रमाणे छे. 'से भिक्ख वा भिक्खुणी वा' ते परत सयमशील साधु सने साथी 'उद्दिसिय उदिसिय' पडसाथी । भनमा पारवा२ विया२ ४शन 'पाय' जाइज्जा' पानी यायन। ४२वी. 'तं जहा' २भ 'अलाउयपाय वो' तुम।३५ २५नु पात्र छ. २०११। 'दारुपाय वा' ४१५४ पात्र छे. अथवा 'मट्टिया पाय वा' भानु पात्र डाय 'तहप्पगार पाय सय वा णं जाइज्जा' २॥ शता तुम। विगैरेन। पात्रेने २१य साधु स.वी यायना ४२वी 'परो वा से दिज्जा' अथवा ५२ सेट है ९२५ श्राप से साधुने आये 'जाव पडिगाहिज्जा पढमा पडिमा' યાવતું આ પ્રકારના તુંબડા વિગેરેના પાત્રને પ્રાસુક-અચિત્ત તથા એષણીય આધાકર્માદિ દેથી રહિત સમજીને ગ્રહણ કરવા. આ પહેલી પારૈવણુ પ્રતિમા–પ્રતિજ્ઞા સમજવી. हे मी पात्र ३५ प्रतिमा-प्रतिज्ञा मतावे -'अहावरा दोच्चा पडिमा' इवे श्री.माया सूत्र:४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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