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________________ मर्म प्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. २ सू. १ षष्ठ पात्रैषणाध्ययननिरूपणम् ७५१ बन्धनसहितानि 'पायाणि' पात्राणि 'अप्फ सु ाई अणेपणिज्जाई' अप्रासुकानि सचित्तानि, अनेपणीयानि आधाकर्मादिदोषयुक्तानि 'जाव नो पडिगाहिज्जा' यावद-मन्यमानो नो प्रतिग्रहीयातावह मुल्यकबन्धनयुक्तपात्राणाम् पासक्तिरूपपरिच्छदवर्धकतया साधनां साध्वीनाश्च तथाविधपात्रग्रहणे संयमविराधना स्यात् तस्मात् 'इच्चेयाइं आयतणाई उनादककम्म' इत्येतानि-उपयुक्तरूपाणि वक्ष्यमाणानि च आयतनानि-कर्मबन्धनरूपदोषस्थानानि उपातिक्रम्य-अतिक्रम्य उल्लङ्गध्येत्यर्थः वर्जयित्वेति यावत् 'अहभिक्खू जाणिज्जा' अथ-अनन्तरम् भिक्षुः-संयमवान् साधुः जानीयात्-'चउहिं पडिमाहिं पायं एसित्तए' चतमृभिः चतुःसंख्यकाभिः अधोवक्ष्यमाणाभिः प्रतिमाभिः-प्रतिज्ञाभिः पात्रैषणारूपामिरित्यर्थः पात्रम्-भाजनम् एषितम्-अन्वेष्टुम् प्रयतेत इति शेषः 'तस्य खलु इमा पढमा पडिमा' तत्र खलु तासु चतुर्विधासु पात्रैषणारूप. पत्थर के बन्धन वाले ये पात्र हैं एवं चर्म के बन्धन वाले ये पात्र हैं 'अण्णयराई वा तहप्पगाराइं इसी प्रकार के दूसरे भी 'महद्धणबंधणाइं पायाणि' बहत कीमत वाले बन्धन युक्त पात्र को 'अप्फासुयाई' अप्रासुक-सचित्त एवं 'अणेसणि. ज्जाई जाय' अनेषणीय आधाकर्मादि षोडश दोषों से युक्त समझते हुए साधु साध्वी मिलने पर भी 'णो पडिगाहिज्जा' नहीं ग्रहण करें क्योंकि बहुमूल्यक बंधन युक्त पात्रों को ग्रहण करने से आसक्ति बढ जायगो और संयम की विराधना होगी इसलिये बहु मूल्यक बन्धन युक्त पात्रों को नहीं ग्रहण करना चाहिये क्योंकि संयम का पालन करना ही साधु का परम कर्तव्य है। 'इच्चेयाई आयत. णाई उवाइकम्म,' ये सभी पूर्वोक्त और वक्ष्यमाण आयतनों कर्मबन्धनरूप दोष स्थानों को अतिकमण कर अर्थात् परित्याग कर 'अहभिक्खूजाणिज्जा चउहिं पडिमाहिं पायं एसित्तए' वक्ष्यमाण चार प्रतिज्ञारूप प्रतिमाओं से अर्थात पात्रैषणाओं से पात्रों को अन्वेषण करने के लिये यतना करनी चाहिये 'तत्य 'महद्धणवंधणाई' या मतना मनवा 'पायाणि' पात्रोन 'अल्फासुय अणेसणिज्ज' અપ્રાસુક-સચિત્ત અને અષણીય આધાકર્માદિ સોળ વાળા સમજીને સાધુ કે સાવીએ 'जाव नो पडिगाहिज्जा' अ५ ४२वा नडी. भ - मूल्य ५'धनवा पात्रान अप કરવાથી તેના પ્રત્યે આસક્તિ વધી જાય છે તેથી સંયમની વિરાધના થાય છે. તેથી બહુમૂલ્ય બંધનવાળા પાત્રોને ગ્રહણ કરવા નહીં કેમ કે સંયમનું પાલન કરવું એજ साधुनु ५२म तय छ ‘इच्चेइयाई आयतणाई उवाइकम्म' मा सारित भने વયમાણ આયતને અર્થાત્ કર્મબંધરૂપ દેષસ્થાનેનું અતિક્રમણ કરીને એટલે કે તેને परित्याग शने 'अह भिक्ख जाणिज्जा चाहिं पडिमाहिं पायं एसित्तए' वक्ष्यमा ચાર પ્રતિજ્ઞ રૂપ પ્રતિમાઓથી અર્થાત પાપણાઓથી પાત્રને પ્રાપ્ત કરવા માટે યતના ४२वी मे. 'तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा' से सारे प्रतिमा-मामा मर्यात प्रतिज्ञा ३५ श्री आया। सूत्र : ४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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