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________________ _ आचारांगसूत्रे ___टीका-'प्रथमेऽध्ययने पिण्डविधिः, द्वितीये च तत्सम्बद्ध वसतिविधिः, तृतीये च तदन्वेषणार्थम् ईर्यासमितिः, चतुर्थे च तत्सम्बद्ध भाषासमितिः, पश्चमें च पिण्डभाषणसम्बद्धवस्त्रैषणाविधिः प्रतिपादितः, षष्ठे चास्मिन् अध्ययने पिण्डादि सम्बद्धपात्रैषणा विधिप्ररूपयितुमाह-'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा स भिक्षुवा भिक्षुकी वा 'अभिकंखिज्जा पायं एसित्तए' अभिकाक्षेत् पात्रम् एषितुम्-अन्वेष्टुम् ‘से जं पुण पायं जाणिज्जा' स संयमवान् भिक्षुः यत् पुनरेवं वक्ष्यमाणरीत्या पात्रं जानीयात् 'तं जहा-अलाउयपायं वा दारुपायं या मट्टियापायं वा' तद्यथा-अलावूपात्रं वा-तुम्बीरूपं पात्रं वा स्यात्, दारुपात्रं वा-काष्ठपात्रं वा स्यात्, मृत्तिकापात्रं वा स्यात् 'तहप्पगारं पायं जे निग्गथे तरुणे' तथाप्रकारम्-अलाघूदारूमृत्तिकान्यतमं पात्रं यो निर्ग्रन्थः साधुः तरुणः 'जाव थिरसंघयणे' यावत्-पूर्ण स्वस्थो युवा और चतुर्थ अध्ययन में ईर्या से सम्बद्ध भाषा समिति का तथा पञ्चम अध्ययन में पिण्ड भाषा से सम्बद्ध वस्त्रैषणा विधिका प्रतिपादन किया है अब इस षष्ठ अध्ययन में पिण्डादि से सम्बद्ध पात्रषणा विधि का प्रतिपादन करते हैं टीकार्थ-'से भिक्खू बा, भिक्खुणी वा अभिकंखिज्जा पायं एसित्तए' वह पूर्वोक्त भिक्षु संयमशील साधु और भिक्षुकी साध्वी यदि पात्र को अन्ये षण करने की आकांक्षा करे और 'से जं पुण पायं जाणिज्जा' यदि वह पात्र को ऐसा वक्ष्यमाण रूप से जान ले 'तं जहा अलाउयपायं वा' जैसे कि-यह अलावू का पात्र है अर्थात् यह तुम्बीरूप पात्र है ऐसा निश्चितरूप से जान ले, या 'दारुपायं या' यह काष्ठ का पात्र है अथवा यह 'मटिया पायं वा' मिट्टी का पात्र है 'तहप्पगारं पायं' इस प्रकार के अलावूके-मृत्तिका दारुपात्रों में 'जे निग्गंथे तरुणे जाय जो निग्रन्थ-संयमशील साधु तरुण जवान हो तथा यावत् 'थिरसंघयणे' पूर्ण स्वस्थ यवा स्थिर संहनन अत्यन्त दृढ मजबूत स्कन्धादि शरीरावयवाला हो 'से एगं पायं धारिजा, णो बिइय' वह एक ही पात्र को ग्रहण करे द्वितीय पात्र को नहीं क्योंकि વિધિનું તથા ત્રીજા અધ્યયનમાં વસતિના લેવા માટે ઈર્ધા સમિતિનું અને ચેથા અધ્યયનમાં ઈય સમિતિથી સંબંધ ભાષા સમિતિનું તથા પાંચમા અધ્યયનમાં પિંડ અને ભાષાથી સંબંધિત વઐષણ વિધિનું પ્રતિપાદન કરવામાં આવેલ છે. હવે આ છઠ્ઠા અધ્યयनमा 4थी सचित पाषा विधिनु प्रतिपाहन ४२वामां आवे छ.-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' ते पूरित सयमशाद साधु म सकी 'अभिकंखिज्जा' पायं एसित्तए' से पात्र मेवानी ४२ ४रे भने 'से जं पुण एवं जाणिज्जा' ले पात्रने ॥ १क्ष्यमा and 'तं जहा' भ3-'अलाउयपाय वा' 241 मसा मर्यात तुमानु पात्र छे. तम निश्चित ३थे गये मया 'दारुपायं वा' An estनु पात्र छ. 2424'मडिया पाय वा' मा भाटिनु पात्र छ. तो 'तहप्पगारं पाय निग्गंथे जे तरूणे जाव' 241 रन तुमsi, aissa , भाटिना पात्रमा नियन्य युवान डाय यावत् थिरसंघयणे' ५ श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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