SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 695
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आवारांगसूत्रे पट्टाणि बा' कनकपट्टानि वा-कनकरसलिप्तपट्टवस्त्राणि 'कणगखइयाणि वा' कनकखचितानि वा-सुवर्णजटितानि वस्त्राणि 'कणगफुसियाणि वा' कनकस्पृष्टानि वा 'वस्त्राणि वग्धाणि वा विवग्घाणि वा' व्याघ्राणि वा-व्याघ्रचर्मनिर्मितानि विव्याघ्राणि वा-चित्रविचित्रव्याघ. चर्मनिर्मितानि वस्त्राणि, तथा 'आभरणाणि वा' आभरणानि वा-आभरणप्रधानानि वस्त्राणि 'आभरणविचित्ताणि वा' आभरणविचित्रितानि वा-आभरणविशेषालंकृतानि वस्त्राणि 'अन्नयराणि वा तहप्पगाराई अन्यतराणि वा-अन्यानि वा तथाप्रकाराणि कनकसूत्रादि निर्मितानि 'आईणपाउरणाणि' आजिनप्रावरणीयानि-अजिनचर्मनिमितानि प्रावरणयोग्यानि च 'वत्थाणि लाभे संते नो पडिगाहिज्जा' वस्त्राणि बहुमूल्यकतया संयमविराधकत्वात् साधुः लाभे सत्यपि नो प्रतिगृह्णीयात् ॥सू० ५॥ वस्त्र 'कणगपाणि वा' कनक रससे लिप्त होने के कारण कनक पद वस्त्र कहलाते हैं तथा जो वस्त्र-'कणगखइयाणि वा' सुवर्ण से खचित होने से कनकखचित कहलाते हैं तथा जो वस्त्र-'कणगफुसियाणि वा' कनक स्पृष्ट कहलाते हैं तथा जो वस्त्र वग्याणि वा व्याघ्र के चर्मसे बनाये जाने के कारण व्याघ्र वस्त्र कहलाते हैं एवं जो वस्त्र-'विवग्धाणि वा' चित्रविचित्र नाना प्रकारके कलर से युक्त व्याघ्र चर्म से निर्मित होने से विव्याघ्र वस्त्र कहलाते हैं तथा जो वस्त्र 'आभरणाणि वा' प्रधान आभरण वाले अर्थात जिन वस्त्रों में अत्यंत अधिक अलंकार डाले गये हैं तथा जो वस्त्र-'आभरणविचिताणि वा' आभरण विशेष से अलंकृत हैं तथा-'अन्नयराणि वा तहप्पगाराइं दूसरे भी इस प्रकार के बहु मूल्य वस्त्रों को जो कि कनक सूत्रादि से निर्मित होने के कारण तथा-'आईणपाउरणाणि वत्थाणि' अजिन चर्मसे निर्मित होने से और प्रावरण अर्थात ओढने के लायक उक्तरिति से अत्यंत बहु मूल्यक वस्त्रों को 'लाभे संते तथा 'कणगपट्टाणि वा' ने सोनाना ढाथी सित थये डाय ते वस्त्र उनपट्ट वस्त्र उपाय छ, तया 'कनकखइयाणि वा' २ १२ सोनाथी भयित हाय ते व अन४ मथित वाय छे. तथा 'कणगफुसियाणि वारे वस्त्र 8 स्पृष्ट १ख डाय तथा 'वग्याणि वारे १२ पाना यामाथी मनाय ते या १२ ४ाय छ, तथा 'विवग्याणि જ જે વસ્ત્ર ચિત્રવિચિત્ર અનેક પ્રકારના કલરવાળા ત્યાઘચર્મથી બનાવેલ હોય તે વિવ્યા. ३१ हेवाय छे. तथा 'आभरणाणि वा' २ १ अत्यत अधिर म ४२ डाय 'अभरणविचित्ताणि वा' तथा रे पर माल२९५ विशेषयी मत डाय ते वस्त्र तथा 'अन्नयरणि वा तहप्पगोराई' मीan 04 R नाम भूल्य परोने २ ४ सूया मन पाना ४ाणे तथा 'आईणपाउराणि वत्थाणि' मनन यामाथी मनावर पायी प्रा१२६ अर्थात् सदा दाय४ x Rना मभूख्य पर। 'लाभे संते नो पडिगाहिज्जा' પ્રાપ્ત થાય તે પણ સાધુ સાધ્વીએ લેવા નહી. કેમ કે બહુમૂલ્ય વરને ગ્રહણ કરવાથી श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy