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________________ प्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. १ सू. ५ पञ्चमं वस्त्रेपणाध्ययननिरूपणम् ६८३ योग्यानि च वस्त्राणि जानीयात् तं जहा - उद्दाणि वा पेसाणिवा' उद्राणि वा-सिन्धुदेशोद्भवमत्स्यविशेषे सूक्ष्म वर्म निर्मितानि वस्त्राणि उद्राणि, एवं पेसानि वा - सिन्धुदेशोद्भव - सूक्ष्म वर्म पशु विशेष चर्मनिर्मितानि वस्त्राणि पेतानि 'पेसलाणि वा' पेशलानि वा - सिन्धुदेशो - पशु विशेष सूक्ष्मचर्मपक्ष्मनिर्मितानि वस्त्राणि पेरालानि 'किण्हमिगाईणगाणि वा' कृष्णमृगाजिनकानि वा - कृष्णमृगाजिनचर्मनिर्मितानि वस्त्राणि 'नीलमिगाईणगाणि वा' नीलमृगाजिनकानि वा नीलमृगाजिनचर्मनिर्मितानि वस्त्राणि 'गोरमिगाईणगाणि वा' गोरमृगाजिनकानि वा - गोरमृगाजिनचर्मनिर्मितानि वस्त्राणि 'कणगाणि वा, कणगर्कताणि वा ' कनकानि वा - सुवर्णरस लिप्तानि एवं कनककान्तीनि वा - सुवर्णसदृशकान्तियुक्तानि ' कणगजान ले कि - 'तं जहा ' जैसे कि 'उद्दाणि वा' ये उद्र वस्त्र हैं अर्थात् सिन्धु देश में उत्पन्न होनेवाले उद्र नामके मत्स्य विशेष के सूक्ष्म चर्म से निर्मित वस्त्र उद्र कहलाते हैं तथा जो 'पेसाणि वा' पेसनाम के वस्त्र है अर्थात् सिन्धु देशमें उत्पन्न सूक्ष्म चर्मवाले पशुविशेष के चर्म से निष्पन्न होने के कारण पेस वस्त्र कहलाते हैं जो वस्त्र 'पेसलाणि वा' पेशल है अर्थात् सिंधु देश में उत्पन्न पशुविशेष के अत्यंत सूक्ष्म बारिक रोमसे निर्मित होने के कारण पेशलवस्त्र कहलाते हैं तथा जो वस्त्र ' कि०ह मिगाईणगाणि वा' कृष्णमृग के अजिन चर्म से निर्मित होने से कृष्ण मृगाजिनक कहलाते हैं एवं जो वस्त्र के 'नीलमिगाईणगाणि वा' नीलमृग के आजिन चर्मसे निर्मित होनेके कारण नीलमृगाजिनक कहलाते हैं एवं जो वस्त्र 'गोर मिगाईणगाणिवा' - गौरमृगके आजिन धर्मसे निर्मित होने से गौरमृगाजिनक कहलाते हैं एवं जो वस्त्र सुवर्ण के रस द्रव से लिप्त होने के कारण अर्थात् वस्त्रों को सोने के रस से पालिश करदेने से 'कणगाणि वा' कनक वस्त्र कहलाते हैं एवं जो वस्त्र 'कणगकंताणि वा' सुवर्ण के सदृश कान्तिवाले हैं तथा जो સિ' દેશમાં ઉત્પન્ન થવાવાળા ઉદ્ર નામના મત્સ્ય પ્રાણી વિશેષના સૂક્ષ્મ ચામડાથી બનેલ वस्त्र केंद्र मुडेवाय है, तथा 'पेसाणि वा' पेस नामना वस्त्र अर्थात् सिधु हेशभां उत्पन्न થયેલ સૂક્ષ્મ ચામડાવાળા પશુ વિશેષના ચામડાથી બનાવેલ હોય તે પેસ વજ્ર કહેવાય छे. तथा 'पेसलाणि वा' ने वस्त्र पेशल होय अर्थात् सिन्धु देशना पशु विशेषता અત્યંત સૂક્ષ્મ જીણા રૂવાટાથી ખનાવેલ હાવાથી પેશલ વસ્ત્ર કહેવાય છે. તથા જિજ્ मिगाईणगाणि वा' हे वस्त्र अणियार भृगना याभडाथी जनेस होय કૃષ્ણ મૃગાજીનક डेवाय छे. तथा 'नीलमिगाईणगाणि वा' ने वस्त्र नीसभृगना याभडाथी मनावेस डाय ते नीसभृगालन आहेवाय छे तथा 'गोरमिगाईणगाणि वा' ने वस्त्र और भृगना याभडाथी जनेस होय ते गौरमृगालः हवा है, तथा 'कणगाणि वा' ने वस्त्र सोनाना रसथी લિપ્ત થયેલ હાય અર્થાત્ વને સેનાના રસથી પાલીસ કરવામાં આવેલ હાય તે वस्त्र उठवस्त्र अवाय छे तथा 'कणगकंताणि वा' के वस्त्र सोना सरणी अंतीवाजा होय શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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