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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. १ सू० १ पञ्चम वस्त्रैषणाध्ययननिरूपणम् ६६९ चतुर्थमिति वस्त्रं धारयेदिति फलितम् । अथ साधीनां वस्त्रधारणसंख्यामाह-'जा निग्गंथी सा चतारि संघाडीओ धारिजा' या खलु निऱ्यार्थी साध्वी वर्तते 'सा चत्तारि संघाडीओ धारिजा' सा चतस्रः अपि संघाटिका:-शाटिकाः धारयेदिति तत्र 'एगं दुहत्यवित्थारं' एकां तावद् द्विहस्तविस्ताराम्-हस्तद्वयपरिमाणाम् संघाटिकाम् धारयेद याम् उपाश्रये तिष्ठन्ती साध्वी प्रावृणोति, 'दो तिहत्य वित्थाराओ' द्वे त्रिहस्तविस्तारे-हस्तत्रयपरिमाणे संघाटिके धारयेदित्यर्थः तत्र एका निर्मला संघाटिकां भिक्षाग्रहणकाले प्रावृणोति, अन्यां संघाटिकान्तु विचार भूमिगमनावसरे धारयति, 'एगं चउहत्यवित्थारं' एकाम् चतुर्हस्तविस्ताराम्-हस्तचतुष्टय परिमाणां संघाटिकां धारयेद्, यां प्रवचनसमवसरणादौ सम्पूर्णशरीराच्छादिकां प्रावृणोति, 'तहप्पगारेहिं वत्थेहिं असंधिज्जमाणेहिं' तथाप्रकारैः-उपर्युक्तरूपेण प्रतिपादितैः वस्त्रैः चतुः तथा तीसरा वस्त्र एवं चतुर्थ वस्त्र भी धारण नहीं करे किन्तु जो साधु वृद्ध है तथा बाल है या रोगी हैं ऐसे साधु तो द्वितीय वस्त्र भी शरीर रक्षार्थ धारण करे किन्तु 'निग्गंधी सा, चत्तारि संघाडिओ धारिजा' जो साध्वी है वह तो चार चद्दर धारण करे उन चार चद्दर में 'एगं वत्थं दुहत्थ वित्थारं' एक चद्दर दो हाथ विस्तारवाली होनी चाहिये जो कि उपाश्रय में रहती हुई साध्वी पहनती है और 'दो तिहत्य वित्थराओ' दो शाटि का तीन हाथ विस्तार वाली होनी चाहिये उन दोनों शाटि का में एक अत्यंत निर्मल स्वच्छ चद्दर को भिक्षा ग्रहण काल में पहनी जाती है और दूसरी तीन हाथकी चद्दर को विचार भूमि गमन करते समय में धारण की जाती है और 'एगं चऊहत्यवित्थारं' एक चौथी चद्दर जो कि चार हाथ विस्तार वाली होनी चाहिये उस को अर्थात् चोथी चद्दर को प्रवचन और समवसरणादि कालमे धारण करना चाहिये जिस से शरीर ही ढक जाता है ऐसी चतर्थ भी चद्दर होनी चाहिये किन्तु-'तहप्पगारेहिं वत्थेहिं असंधिज्जमाणेहि' यदि उपर्युक्त ધારણ કરવું નહીં પરંતુ જે સાધુ વૃદ્ધ હેય તથા બાળક હોય અથવા રેગી હેય એવા साधुसे तो शरी२ २क्षाथ मा १ घार ३२ 'जा निग्गंथी सा चत्तारि संघाडिओ थारिज्जा' रे साली डाय तेमणे तो यार या४२ ३५ पत्र धारण ४२वा से यारोमा 'एगं दुहत्यवित्थार' ४ या४२ ४ १ मे हाय विस्तार पाणु डानसरे पायमा २२नार साध्वी ५२ छ तथा 'दो तिहत्थ वित्थराओं' में या४२ त्रए सायना विस्तार पाणी હેવી જોઈએ. એ બે ચાદરમાં એક અત્યંત નિર્મળ સ્વચ્છ ચાદરને ભિક્ષા ગ્રહણ કાળમાં પહેરવી જોઈએ. અને બીજી ત્રણ હાથની ચાદરને વિચાર ભૂમિગમન કરવાના સમયે धार ४२।५ छ. 'एगं चउहत्यवित्थार' याथी या 32 या२ &विस्तार पाणी पी જોઈએ તેને અર્થાત ચોથી ચાદરને પ્રવચન અને સમવસરણાદિ સમયે ધારણ કરવી. नायी समय १२ 't atय की याथी या४२ सपी न ५२'तु 'तहप्पगारेहिं वत्थेहिं ते ॥ मात ५२।४त या२ या२ न्याशने प२१॥ छतi 'असंधि श्री आया। सूत्र : ४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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