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________________ ૬૮ आचारांग सूत्रे एवं शाणिकम् - शणसूत्रवल्कल निष्पन्नं पाट ( पटुआ ) वस्त्रादिकम् एवं पात्रिकम् - तालपात्रादिसंघात निष्पन्नम् वस्त्रम्, एवम् ' खोमियं वा तूलवर्ड वा क्षौमिकं वा कार्पासिकं, तूलकृतं वा अर्कादितुलनिष्पन्नं वस्त्रं जानीयात् इति पूर्वेणान्वयः 'तहपगारं वत्थं वा तथाप्रकारम्-तथाविधम् अन्यदपिवस्त्रं वा धारयेदित्यग्रेणान्वयः 'तत्र साधूनां वस्त्रधारणमात्रामाह 'जे निग्गंथे तरुणे जुगवं बलवं अप्पायंके थिरसंघयणे' यो निर्ग्रन्थः साधुः तरुणः युवा बलवान्-शक्ति सम्पन्नः अल्पातङ्कः- रोगरहितः स्थिरसंहननः दृढकायः धैर्यशाली वा वर्तते 'से एगं वत्थं धारिज्जा' स तथाभूतः साधुः एकम् - एकमेव वस्त्रं धारयेत् शरीररक्षार्थम्, वृद्धो वालो रोगी वा साधुः शरीररक्षार्थं द्वितीयमपि 'नो बीयं' नो द्वितीयं नापि तृतीयं न वा विकलेन्द्रिय कृमिकी लाला (लाड) से यह वस्त्रादि निष्पन्न हुआ है या 'साणियं वा शाणिक - शण सूत्र वल्कल छाल वगैरह से निष्पन्न है 'पोत्तगं वा' पाट-पटुआ वस्त्रादि है अथवा पात्रिक:-ताल पत्रादि संघात से निष्पन्न हुआ है 'खोमियं वा ' क्षौमिक कापोस वगैरह से निष्पन्न क्षोम वस्त्र है अथवा 'तूलकडं वा' तूल कृत है अर्थात् आंक वगैरह वृक्षों के रुई से निष्पन्न किया गया है ऐसा जानकर 'हप्पारं वत्थं वा धारिज्जा' इस प्रकार के वस्त्रों को साधु और साध्वी ग्रहण करे तथा इस तरह के किसी दूसरे वस्त्र को भी धारण करना चाहिये अब किस साधु को कितना वस्त्र धारण करना चाहिये सो कहते हैं- 'जे णिग्गंथे' जो निर्गन्ध संयमशील साधु-'तरुणे जुगवं बलवं' तरुण युवा तथा बलवान् अर्थात् शक्ति संपन्न है एवं- 'अप्पायंके' अल्प आतंक वाले अर्थात् रोगरहित है और 'थिर संघer' दृढकाय और धैर्यशील है 'से एगं वत्थं धारिजा' - वह साधु एक ही वस्त्र धारण करे अर्थात् जो साधु अत्यंत मजबूत शरीर तथा रोगरहित याने नीरोग है यह केवल शरीर रक्षार्थ एक ही वस्त्र धारण करे- 'नो बीयं' दूसरा वस्त्र नहीं पहरे छे! अथवा 'साणियं वा' वस-शशुसूत्रथी मनावेस या वस्त्राहि छे. अथवा 'पोत्तगं बा' तास पत्र विगेरेना समुदायथी मनावेस या वस्त्राहि छे. अथवा 'खोमियं वा' उपास विगेरेथी मनावेस क्षौभवस्त्र छे अथवा 'तूलकर्ड वा' तूझङ्कृत मेटले याङडा विगेरे वृक्षना ३थी मनावेत या वस्त्र छे. आ प्रमाणे समने 'तहप्पगार वत्थं वा धारिज्जा' એ પ્રમાણેના વસ્ત્રા સાધુ અને સાધ્વીએ ગ્રહણ કરવા. हवे या साधुये डेटला वस्त्र धारण ४२त्रा ते मतावे छे. 'जे निग्गंधे तरुणे जुगव - बलब' ने निर्भन्ध संयमशील साधु त३ वयस्ड युवान तथा भणवान होय तथा 'अप्पायंके धिरसंघणे' महय आतंवाणा अर्थात् रोग रहित होय तथा दृढाय भने धैर्यशाणी डाय. 'से एंग वत्थं वारिज्जा' तेवा साधुये ४४ वस्त्र धारण ४२ अर्थात् ने साधु ખૂબ મજબૂત શરીરવાળા તથા નિરેણી હોય તેમણે કેવળ શરીર पख धार ३२१', 'नो बीय' मी वस्त्र धारण २ नहीं तथा त्रीभुं રક્ષા માટે એક જ थुस्त्र શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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