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________________ ६५४ आचारांगसूत्रे घोटनयोग्यानि इति वा टालानि--कोमळास्थीनि इति वा द्वैधिकानि-भक्षितुं द्विषाकर्तु योग्यानि खण्डनयोग्यानि सन्तीति न वदेदित्युपसंहरन्नाह-'एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव नो मासिज्जा' एतत्प्रकाराम्-एवं विधाम् पक्वादिशब्दरूपां भाषां सावद्याम्-सगम् यावत्सक्रिया कटुको कर्कशाम् परुषां निष्ठुराम् प्राण्युपतापिनीम् भूतोषघातिनीम् अभिकाक्ष्य मनसा पर्यालोच्य विचार्य नो भाषेत, तथा भाषणे संयमविराधना संभवात्, सम्प्रति वनीयफलविषये भाषणयोग्यां भाषामधिकृत्याह- से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' स संयमवान् भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा 'बहुसंभूया वणफला अंबा पेहाए एवं वइज्जा' बहुसंभूतानि अधिकमात्राया मुत्पनानि वनफलानि आम्राणि (भाम्रान्) चूतादिफलानि प्रेक्ष्य-दृष्ट्वा एवं-वक्ष्यमागरीत्या वदेत् 'तं जहा-असंण्डाइ वा तद्यथा-असमर्थानि बहु भारतया नत्रीभूतानि 'बहुनिवटिम फलाइवा' बहुनिवर्तितफलानि-अत्यधिक निष्पादित फलानि इति वा 'बहुसंधूयाइ वा' बहुसंभूतानि 'वेलोइयाइ वा ग्रहण करने योग्य काल में निष्पन हो चुके हैं तथा 'टालाइ वा' तथा तोडने योग्य ये फल हैं तथा 'वेहियाइवा' कोमल गुठली वाले हैं एवं खाने के लिये दो टुकडे करने योग्य हैं 'एपप्पगारं भासं सावज्जं जाब' इस प्रकार परिपक्वादि शब्द 'नो भासिज्जा' बोलना नहीं चाहिये क्योंकि इस तरह बोलने से ये शब्द सावध कहे जाते हैं। ___ अप साधु अने साध्वी को बनीयफल के विषय में बोलने योग्य भाषा को लक्ष्यकर बतलाते हैं-'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' वह पूर्वोक्त भिक्षुसंयमशील साधु और भिक्षुकी-साध्वी 'बहुसंभूया वणफला अंबा-पेहाए' अत्यंत अधिक मात्रा में उत्पन्न आध्र वगैरह फलों को देखकर 'एवं वइजा' इस प्रकार वक्ष्यमाण रूप से बोले 'तं जहा' जैसे कि 'असंघडाइ वा' ये आम्र वगैरह फल अधिकभार के कारण नीचे झुक गये हैं और 'बहुनिवहिम फलाइ वा' अत्यधिक रूपसे निष्पन्न हुए हैं तथा 'बहु संभूयाइवा" प्रचुरतया विगैरेभा समान ५४qाथी भाषा योय छे. तथा 'वेलोइयाइ वा' पाने योग्य भी नि०५-न ये छ. 'टालाइ वा' २५॥ ३॥ त योय छे. 'वेहियाइ वा' मग गावी पामा छ. तथा पाप। भाट ४४७१ ४२१। योय छे “एयप्पगारं भासं सावज्जं जाव नो भासिज्जा' 20 १२न। परि५४१६ ४ मोसा नी भ3-२॥ शत मातपायी ॥ શબ્દ સાવધ રહેવાથી આધાકર્માદિ દેષ લાગે છે. - હવે ફળોના સંબંધમાં સાધુ કે સાધ્વીને બેલવા ગ્ય ભાષાને ઉદ્દેશીને કથન १२ ७. 'से भिक्ख वा भिक्खुगी वा' ते ति सयमशी साधु म सकी 'बहुसंभृया अंबा पेहाए' पधारे प्रभामा 4-1 ये ममा विगेरेना जाने निधन एवं वइज्जा' मा १६यमा शत मास 'तं जहा' म है-'असंथडाइ वा' या मा विगेरेना । पधारे सारथी नाय नभी गया छे. तथा 'बहुनिवट्टिमफलाइ वा' ५५ धारे पहा थयेस श्री मायारागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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