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________________ ५७४ आचारांगसूत्रे वा गच्छिहिह' कुत्र वा गमिष्यथ ! इत्येवं यदि ते पृच्छेयुस्तहि 'जे तत्थ आयरिए वा उवज्झाए वा' यस्तत्र-तस्मिन् स्थाने तेषु श्रमणेषु आचार्यों वा उपाध्यायो वा स्यात् 'से भासिज्ज वा वियागरिज्जवा' सः आचार्यों वा उपाध्यायो वा भाषेत वा पथिकान्प्रति सामान्यतो वदेत् व्याकुर्याद् वा-विशेषतो वा वदेत्, 'आयरियउवज्झायस्स' आचार्योपाध्यायस्य 'भासमाणस्स वा' भाषमाणस्य वा सामान्येन वदतः 'वियागरेमाणस्त वा व्याकुवाणस्य वा-विशेषतो वा उत्तरत: 'नो अंतरा भासं करिज्जा' नो अन्तरा-भाषणमध्ये भाषां भाषणं साधुः कुर्यात् अपितु 'तओ संजयामेव अहाराईणिए' ततः तदनन्तरम् संयतमेव यत नापूर्वक मेव यथारात्निकैः श्रेष्ठसाधुभिः सह 'गामाणुगाम दूइज्जिजा' ग्रामानुग्रामम्-ग्रामाद् ग्रामान्तरं 'दुइज्जिज्जा' दृयेत गच्छेत् ‘से भिक्खू वा भिक्खुणो वा' स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा 'अहाराइणियं गामाणुगाम' यथा रात्निकम्- श्रेष्ठसाधुमनुसृत्य ग्रामानुग्रामम्-ग्रामाद् एह' कहां से आ रहे है ? और 'कहिं वा गच्छिहिह' कहाँ जा रहे है ? ऐसा पूछने पर वहां पर 'जे तत्थ आयरिए वा उचज्झाए चा' जो आचार्य या उपाध्याय वगैरह बुजर्ग हाँ 'से भासिज्ज वा वियागरिज्ज वा' ही उत्तर दे और उक्त सभी प्रश्नों का उत्तर अच्छी तरह से खुलाशाचार दे किन्तु उत्तर देते हुए उन 'आयारिय उवज्झायस्स वियागरेमाणस्स भासमाणस्स चा' आचार्य उपाध्याय वगैरह के मध्य में अंतरा 'णो भासं करिज्जा' अन्य साधु को नही बोलना चाहिये अर्थातू आचार्य तथा उपाध्याय वगैरह ही पथिकों के पूछने पर उन प्रश्नों का उत्तर दे अन्य साधु उत्तर नहीं दे क्योंकि मर्यादा के अनुसार ही रहना चाहिये इसलिये तओ संजयामेव अहाराईणिए' संयमपूर्वक ही यथारात्निक श्रेष्ठ बडे साधुओं के साथ 'गामाणुगामं दूइन्जिज्जा' एक ग्राम से दूसरे ग्राम जाय 'से भिक्खु वा भिक्खूणी वा अहाराइणियं गामाणुगामं दूइजजमाणे णो राइणियस्स हत्थेण हत्थं जाय अणासायमाणे तओ संजयामेव अहामन या छ १ मा शत पूछ तो 'जे तत्य आयरिए वा उवज्झाए वा' त्या रे आवाय अथवा उपाध्याय alse डाय 'से भासिज्ज वा वियागरिज वा' तयार उत्तर मापवा. मने पूछा सा प्रश्नान। त२ सारी रात सुहासापार मा५३। 'आयरिय बज्जायस भासभाणरस वा वियागरेमाणस्स वा' उत्तर भापता थे भाया । उपाध्याय विगैरेनी 'अंतरा णो भासं करिज्जा' पयमा मन्य साधुझे मालन नये અર્થાત આચાર્ય કે ઉપાધ્યાય વિગેરેએ પથિકે પૂછેલા પ્રશ્નોના ઉત્તર દેવા. બીજા સાધુએ उत्तर मापा नही. भ3 भयानुसार २ 'तओ संजयामेव' म२ सय प र 'अहारायणिए' 43 साधुनी साथै 'गामाणुगाम दुइज्जिज्जा' थे। मथी धीरे माम गमन ४२ से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' ते पूर्वात साधु, साथी 'अहाराइ. साधुमानी साथे 'गामाणुगाम दुइन्जमाणे' २४ मथी पारे भाम rai नो रायणियस्स हत्थेण हत्थं' तपातानथी पास साधुयाना २ पाताना साथी श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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