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________________ - आवारांगसूत्रे थलचरा या' स्थलचरा या महिषादयः 'खहचरा या' खेचरा वा' खेचरा वा 'सत्ता' सत्याः प्राणिनः स्युः 'ते उत्तसिज्ज वा वित्तसिज्ज वा' ते उत्त्रसेयु वा उत्त्रासं-भयं प्राप्नुयुः वित्रसेयु या गच्छेयुः 'याडं पा सरणं कंखिज्जा' वाट वा शरणं वा काक्षेयुः-वाञ्छेयुः, आश्रयं समीहेरन् 'वारित्ति मे अयं समणे' वारयति-निवारयति माम् मृगादिकम् अयं श्रमणः साधुरितिभिया शरणम् आकाङ्केयुः 'अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा पइण्णा' अथ भिक्षणां साधूनां साध्वीनाश्च कृते पूर्वोपदिष्टा तीर्थकदुक्ता प्रतिज्ञा संयमपालनरूपा वर्तते तदाह 'जं नो पाहाओ पगिझिप पगिझिय निज्झाइज्जा' यत् खलु नो बाहुना प्रगृह्य प्रगृह्य निध्याहोगें 'सीहावा' सिंहव्याश्य वगैरह वनचर प्राणी होगें तथा 'जलचरा या वसा. रस हंस मत्स्य कच्छप वगैरह जलचर प्राणी होंगे तथा 'खहयरा या' खेचर आकाश में विचरने वाले गीध वगैरह 'सत्ता' जीव जन्तु प्राणी होगे ते उत्तसिज्ज वा'वे सभी हरिण वगैरह पशुपक्षी प्राणी उत् त्रास तथा वित्तसिज्ज वा' चित्रास को प्राप्त करेगें अर्थान् त्रास के मारे अत्यंत भयभीत होकर व्याकुल हो जायेगे घयडा जायेगें और 'वाडंवा सरणंवा कंखिज्जा' वे सभी प्राणी अत्यंत त्रस्त होकर वाटको या सरण को चाहेगें अर्थात् त्राससे बचने के लिये किसी आश्रय की सहारा के लिये आकाङ्क्षा करेंगे अर्थात् 'वारित्ति मे अयं समणे वा' ये श्रमण साधु लोग हरिण वगैरह हमलोगों को निवारण कर रहे हैं ऐसा संदेहकर किसी भी शरण को चाहेगें यह बात साधु के लिये ठीक नहीं है क्योंकि 'अह भिक्खू णं पुचोवदिट्ठा पइण्णा' साधु के लिये पहले ही भगवान महावीर स्वामी ने ऐसी प्रतिज्ञा प्रेरणा की है कि 'जं णो बाहाओ पगिज्झिय पगिज्झिय निजाइज्जा' साधुको बाहु अंगुलि निर्देश कर नहीं देखना चाहिये 'तओ संजयामेव आयरिय 60 तथा स५ विगेरे प्राय शे तथा 'सीहा वा जलचरा वा' सिड या विशेष વનચર પ્રાણિ હશે તથા બગલી સારસ, હંસ વિગેરે જલચર પ્રાણિ હશે તથા 'थलचरा वा खयरा वा' थे। पीछी पोरे २५० य२ प्रारियो तथा भाभी शीध सभामा विशेष 'सत्ता' प्रालियेशे ते मया २५ विगैरे ५१ ५क्षा विशेष प्रालियो 'ते उत्तसिज्ज वा वित्तसिज्ज वा' उत्त्रास तथा वित्रास पाभरी. अर्थात सामान्य है विशेष ત્રાસને લીધે અત્યંત ભય ભીત થઈને વ્યાકુળ થશે ગભરાઈ જશે. અને એ બધા પ્રાણિયે અત્યંત त्रास पामीन 'वाडं वा सरण वा कंखिज्जा' पाशरे। शबरी २५१२ २३५ न्यारी अर्थात् त्रासथा मया भाटे ४५ माश्रयना सहाय भाटे २०४२0. अर्थात् 'वारित्ति मे अयं મળે' આ શ્રમણ સાધુ લેક અમને હટાવે છે. એમ સંદેહ લાવીને કેઈનું શરણ ४२७0 से साधुन भाटे योग्य नथी म 'अह भिक्खणं पुव्वोवदिवा पइण्णा' साधुमाने भाट लगवान महावीर स्वामी परमेथी र सेवा प्रेरणा मापी के 'जं णो बाहाओ श्री. ॥॥२॥ सूत्र:४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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