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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. ३ सू० २४ तृतीयं ईर्याध्ययननिरूपणम् ५६९ वा' सरासरः पङ्क्तयो वा परस्परसंलग्नबहुसरांसि एवमादीनि 'नो बाहाओ पगिज्ज्ञिय पगिझिय जाव निझाइज्जा' नो बाहुना प्रगृह्य प्रगृह्य बाहुम् उत्क्षिप्य उत्क्षिप्य यावद अगुल्या उद्दिश्य उद्दिश्य अवनम्य अवनम्य उन्नम्य उन्नम्य निध्यायेत्-पश्येत्, दर्शयेद् वा, तत्र हेतुमाह- केवली बूया-आयाणमेयं केवली केवलज्ञानी भगवान् तीर्थकृद् ब्रूयात् ब्रवीति उपदिशतीत्यर्थः आदानम्-कर्मबन्धकारणम् एतत्-कच्छादिकस्य वाहादिना प्रदर्शनम् तथाहि 'जे तत्थ मिगा वा एसू वा पंखी वा' ये तत्र-तस्मिन् कच्छादि प्रदेशे मृगाः हरिणादयो वा, पशवो वा-गोवृषभादयः पक्षिणो वा--काकशुकादयः 'सरीसिवा वा' सरीसृपा या सदियः 'सीहा वा' सिंहा वा 'जलचरा वा' जलचरा वा वकादयः सारसहंसादयो या पंक्ति-परम्परा अनेक सरोबर मिले अथवा 'सरसरपंतियाणी या परस्पर संलग्न मिले हुए अनेक सरोवर मिले 'णो बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय' इन सब कच्छ प्रभृति स्थलों को बार बार अपने बाहों को, ऊपर उठाकर और अंगुलियों का निर्देश कर या आगे बढाकर या नीचे झुकाकर 'जाव निज्झाइज्जा या' नहीं देखे अर्थात् अपने बाहू अंगुलि वगैरह को ऊपर उठाकर या निर्देशकर कच्छादि भूभाग विशेष को भी नहीं देखना चाहिये और दूसरों को भी नहीं दिखलाना चाहिये क्योंकि केवलीबूया आयाणमेयं' केवली केवलज्ञानी वीतराग भगवान महावीर स्वामी कहते हैं कि यह कच्छादि भूभागों को बाहु अंगुलि वगैरह से निर्देशकर स्वयं देखना और दूसरे को भी दिखलाना साधु और साध्वी के लिये कर्म बंधनका कारण माना जाता है क्योंकि 'जे तत्थ तत्र वहां पर अर्थात उन कच्छ वगैरह भूभागों में जो ये 'मिगा चा' मृग हरिण वगैरह प्राणी होगे तथा-पसू वा' गाय बेल वगैरह पशु होगें तथा 'पंखी वा' कौवे तोते पोपट मैना वगैरह पक्षी होगें तथा 'सिरिसिया वा' सरीसृप सर्प वगैरह प्राणी पति भणे पांसे पांसे मने स२ भणे 'सरसरपंतियाणि वा' 4241 ५२२५२ संत भणेसा अने: स३।। भजे ॥ ५॥ पै मावत 'नो बाहाओ पगिः ज्झिय पगिज्झिय' पार पा२ पोताना हायाने या रीने २०१२ 'जाव निज्झाइज्झा' मा. ળીયેથી નિર્દેશ કરીને આંગળીને આગળ કરીને કે નીચે નમાવીને જોવા નહીં અર્થાત્ પિતાના હાથે કે આંગળી વિગેરેને ઉંચા કરીને કે નીચા નમાવીને કે સંકેત કરીને ४२७६ प्रदेश विशेष पोते ५५५ नवे ने भीतने ५ न मताभ 'केवली बूया आयाणमेय' ३१ ज्ञानी वात२॥ भवान् महावीर स्वामी ४ छ ?-मा ४२ ભભાગને હાથ આંગળી વિગેરેથી નિર્દેશ કરીને પિતે જેવા કે બીજાને બતાવવા સાધુ भने साथीर भाट भएननु ४।२९५ मानवामां आवे छे. भ. 'जे तत्थ मिगा या पसू वा' से ४२७ विगेरे भूप्रदेशमा २ २६ विगेरे प्राणियो हरी तथा गाय सेस विगरे पशु श तथा 'पखी वा सरोसिवा वा' ५१११, पोपट भेना विगैरे भी। आ० ७२ श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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