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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंघ २ उ. २ सू० २२-२३ तृतीय ईर्याध्ययननिरूपणम् ५५९ रूपम्-अनेकविधम् सन्निरूद्धम्-सन्निविष्टम् सेनासन्निवेशं प्रेक्ष्य 'सइपरक्कमे' सतिपगक्रमे अन्यगमनमार्गे सति 'संजयामेव परक्कमेज्जा' संयतमेव यतनापूर्वकमेव अन्यमार्गे णैव पराक्रामेत् गच्छेत् 'नो उज्जुणा' नो ऋजुना सरलेनापि तथाविधेन शकटादियुक्तमार्गेण 'गच्छेज्जा' गच्छेत्, तत्र हेतुमाह-'से णं परो सेणागो वइज्जा' स खलु परः सद्गृहस्थ: कथित् सेनागतः प्रधानपुरुषः वदेत्-यंकमपि सैनिकं पुरुषं कथयेत् 'आउसंतो' ! हे आयुमन् ! 'एस णं समणे सेणाए अभिनिवारियं करेई' एष खलु श्रमणः साधुः सेनायाम् अभिनिवारिकाम् गुप्तचरत्वरूपम् रहस्यभेदं करोति सेनाया रहस्यं ज्ञातुं गुप्तचरकार्य करोतीत्यर्थः ‘से णं बाहाए गहाय आगसह' तं खलु साधु बाहुना गृहीत्वा आकर्षत-इतस्ततः आकर्षणं कुरु इत्येवं सेनापते राज्ञां प्राप्य 'से णं परो बाहाहि गहाय आगसिज्जा' तं खलु साधुं परः पुरुषः सैनिकः कश्चित् बाहुना गृहीत्वा आकर्षयेत्, किन्तु साधूनां समदर्शितया आकर्षणे कृतेऽपि 'तं णो सुमणे सिया' तत् तस्मात् कारणात् साधुनों सुमनाः प्रसन्नो वा मार्ग के मध्य में ही अनेक प्रकार के संनिविष्ठ सेनाओं के शिविर को देखे तो 'सइपरक्कमे गमन करने के लिये दूसरे मार्ग के रहने पर 'संजयामेव परकमेज्जा' संयम पूर्वक ही उस दूसरे मार्ग से ही जाय, किन्तु णो उज्जुयं गच्छेज्जा' उस सरल गोधूमादि धान्य वगैरह वाले मार्ग से नहीं जाय क्योंकि 'से णं परो सेना गओ वइज्जा आउसंतो' वह पर सद्गृहस्थ सेनागत प्रधान कोई पुरुष जिस किसी भी सैनिक पुरुष को कहेगा हे आयुष्मन् 'एस णं समणे सेणाए' यह श्रमण साधु सेना में आकर 'अमिनिवारीयं करेई' रहस्य को जानने के लिये गुप्तचर (सी. आइ.डी.) का काम करता है अर्थात् रहस्यभेद करता है ‘से णं बाहाए गहाए आगसह इसलिये उस साधुको बाहाँ से पकडकर इधर ले आओ इस तरह से सेनापति की आज्ञा पाकर 'से ण परो बाहाहिं गहाय आगसिज्जा' सैनिक पुरुष इस साधु को बाहाँ से पकडकर आकर्षित करेगा किन्तु साधुमहात्मा के समदर्शी होने से आकर्षण करने पर भी 'तं णो सुमणे सिया जाय साने हे तो 'सइपरक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा' ४५भाट मा २ लाय तो सयम पूर्व में भी भागे थी . 'णो उज्जुयं गच्छेज्जा' ५२'तु मे स२८ २स्तेथी । मां बहु विगेरे माता जय ते २स्वी यु नही भ3-से ण परो सेनागओ वइज्जा' ते ५२-७५ सेना नाय ५३५ 315 सनिने डेरी 3-'आउसंतो एस णं समणे' 3 आयुष्मन् ! ॥ श्रम सयमशील साधु 'सेनाए अभिनिवारिय करेइ' सेनामा मापीर तेनी गुप्तपात organ माटे गुस्तयनु म ४२ छ. 'से गं बाहाए गहाय' तेथी मा साधुने डायाथी ५४ी 'आगसह' मडीयn as मावे ॥ ५२नी सेना नाय नी माझा पाभीर से ण परो बाहाहि गहाय' ते सैनि ५३५ से साधुने लायाथी ५२ 'आगसिज्जा' मेयरी ५२'तु साधु सभडिपाथी में 24। छतi 'तं णो सुमणे શ્રી આચારાંગ સૂત્રઃ ૪
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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