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________________ % 3 DDE ५०८ आचारांगसूत्रे संयतमेव तेनैव मार्गान्तरेण यतनापूर्वकं पराक्रमेत् गच्छेत् 'नो उज्जुयं गच्छिज्जा' नो ऋजुना सरलेनापि मार्गेण बहुप्राणियुक्तेन गच्छेत्. तदुपसंहरन्नाह-'तओ संजयामेव गामाणुगाम दुइज्जिज्जा' ततः तस्मात् कारणात् संयतमेव यतनापूर्वकमेव बहुप्राणिरहित मार्गेणैय ग्रामानुग्रामम् ग्राभाद् ग्रामान्तरं गच्छेत् । तथा च बहुजीवजन्तुरहितगमनमार्गाभावउक्तगमन विधिः प्रतिपादितः, तथाविधगमनमार्गसत्वेतु तेनैव गमनं कर्तव्यमिति सू० ६॥ ___मूलम्-से भिक्खू या भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइजमाणे अंतरा से पाणाणि वा बीआणि वा हरिआणि वा उदए वा मट्टिआ वा अविद्धत्थे सइपरक्कमे संजयामेव परिकमिजा नो उज्जु गच्छिज्जा तओ संजयामेव गामाणुगा दूह जिजा सू० ७॥ छाया-सभिक्षु वा मिक्षुकी वा ग्रामानुग्राम गच्छन् अन्तरा नस्य प्राणिनो वा बीजानि वा हरितानि वा उदकं वा मृत्तिका वा, अविध्वंसमानो सति पराक्रमे संयतमेव परिक्रमेत् पर 'सजयामेव परिकमिज्जा' संयमपूर्वक उसी दूसरे मार्ग से जाना चाहिये किन्तु 'णो उज्जुयंगच्छिज्जा' बहत प्राणियों से युक्त सीधे मार्ग से नहीं जाना चाहिये क्योंकि उस अनेक जीव जन्तुओं से युक्त रास्ते से जाने में अनेकों जीवों की हिंसा होगी और उससे साधु साध्वी को संयम विराधना होगी अर्थात बहुत जीव जन्तु रहित गमन मार्ग नहीं होने पर उसी मार्ग से जाने की विधि बतलायी गयी है किन्तु यदि जीव जन्तु रहित दूसरा मार्ग हों तो 'तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइजिजज्जा' संयमपूर्वक ग्रामानुग्राम उसी दूसरे जीव जन्तु रहित मार्ग से जाना चाहिये, किन्तु जीव जन्तु वाले मार्ग के सरल सीधे होने पर भी उससे नहीं जाना चाहिये उस सरल मार्ग से जाने से जीव हिंसा की संभावना रहेगी, इसलिये जीवजन्तु रहित मार्ग से ही जाना चाहिये जिस से जीवजन्तु की हिंसा न हो ऐसा अवश्य ध्यान रखना चाहिये ॥सू० ६॥ वा कटु पाय रीइज्जा' ५गने ५। रीने या भने 'सइ परक्कमे संजयामेव परिकमिज्जा' भीन्न २स्तो डाय तो संयमपूर्व में भी माथी ४ परतु'णो उज्जुयं गच्छिज्जा' પણ ઘણા પ્રાણિયાવાળા સીધા રસ્તેથી ન જવું, કેમ કે અનેક જીવ જંતુઓવાળા તેથી જવાથી અનેક જીની હિંસા થાય છે. અને તેનાથી સાધુ સાધ્વીને સંયમ વિરાધના થાય છે અર્થાત્ ઘણું જીવજંતુઓ વિનાને જવાને રસ્તે ન હોય તે એ માગેથી જવાની વિધિ કહી છે. પરંતુ જે જીવજંતુ વિનાને બીજો માર્ગ હોય તે બીજે રસ્તેથી જવું પણ જીવજંતુઓ વાળે માર્ગ સરળ સીધે હોય તે પણ તે માર્ગેથી ન જવું. કારણ કે એ સરળ માર્ગેથી જવાથી જીવ હિંસાની સંભાવના રહે છે તેથી જીવજંતુ विनानाभागे थी ४ 'तओ संजयामेव गच्छिज्जा' सयमपूर्व मे योग्य छ. ॥१० ६॥ श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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