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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. १ सू० ५ तृतीयं ईर्याध्ययननिरूपणम् ५०५ टीका-अथ वर्षाकालिकचातुर्मास्ये व्यतीते ऽपि वर्षायाः सद्भावे हेमन्तस्य पश्चदश दिनपर्यन्तं तत्रैव निवासेऽपि तदनन्तरं ग्रामान्तरं गन्तव्य मित्याह - 'अह पुणेदं जाणिज्जा - ' अथ यदि पुनरेवं वक्ष्यमाणरीत्या जानीयात् - 'चत्तारि मासा वासावासाणं वीइकंता' चत्वारो मासाः श्रावण भाद्रपदाश्विन कार्तिकमासरूपाः, वर्षावासानां - वर्षाकालानाम् व्यतिक्रान्ताः व्यतीताः 'हेमंताण य पंचदसरायकप्पे परिवुसिए' हेमन्तानाञ्च पञ्चदशरात्रिकल्पे पर्युषिते व्यतीते सति 'अंतरा से मग्गे अप्पंडा' अन्तरा - ग्रामाद् ग्रामान्तरमध्ये तस्य साधोः मार्गः पन्थानः अल्पाण्डाः अण्डरहिता: अल्पशब्दस्य ईषदर्थकतया नञर्थे पर्यवसानात्, तथा 'अप्पपाणा' अल्पप्राणाः - प्राणिवर्जिताः 'अप्पवीआ' अल्पवीजा:- बीजाङ्कुररहिताः 'अप्पहरिया ' अल्पहरिताः - हरित तृणादिवर्जिताः 'अप्पोदगा' अल्पोदकाः शीतोदकरहिताः 'अप्पू सिंग अब वर्षाकालिक चातुर्मास्य के वीतने पर भी वर्षा चालु रहने पर हेमन्त ऋतु के भी पन्द्रहदिन तक उसी जगह निवास कर बाद में साधु तथा साध्वी को दूसरे ग्राम जाना चहिये यह बतलाते हैं टीकार्थ- 'अह पुणरेवं जाणिजा-चत्तारि मासा वासावासाणं बीइक्कंता' अथ यदि ऐसा वक्ष्यमाण रूपसे साधु और साध्वी जान लें कि वर्षावास चातुर्मास्य वर्षाकाल के चार महीने व्यतीत हो गये हैं और 'हेमंताण पंचदसरायकप्पे परिसिए' हेमन्तऋतु के भी पन्द्रह दिन रात्रिकल्प व्यतीत हो चुके हैं और 'अंतरा - सेम' उस साधु के और साध्वी के गमन के मार्ग भी अर्थात् एक ग्राम से दूसरे ग्रामके मध्य के मार्ग भी 'अप्पंडा' थोडे ही अण्डों वाले हैं यहाँ पर भी अल्प शब्द ईषद अर्थक होने से नञर्थ में पर्यवसान होने से अण्ड रहित अर्थ समझना चाहिये इस प्रकार 'अप्यपाणे' अल्पप्राण अर्थात् प्राणियों से रहित है एवं 'अप्पीओ' अल्पबीज वाले अर्थात् बीज रहित भी हैं तथा 'अप्पहरिया' अल्पहरित याने हरेभरे तृणघास वगैरह से रहित मार्ग हो चुका है एवं 'अप्पो હવે વર્ષાઋતુના ચાતુર્માસ વીત્યા બાદ વરસાદ ચાલુ હાય તેા હેમન્ત ઋતુના પણ પ'દર દિવસ એજ સ્થળે નિવાસ કર્યાં બાદ સાધુ અને સાધ્વીને વિહાર કરવા માટેનું સૂત્રકાર अथन कुरे छे. टीअर्थ - 'अह पुण एवं जाणिज्जा' हुवे ले तेयोना लगुवामां मेवु यावे 'चत्तारि मासा वासावासाणं वीइकंत्ता' वर्षाभणना यारभास वोती गया छे. 'हेमंताणय' भने डेभन्त ऋतुना या 'पंचदसरायकप्पे' पहर हिवस ३५ रात्री 'परिवुसिए' पीती गयेला छे 'अंतरा से मगे भने ते साधुने भवाना भार्ग पशु 'अपंडा अप्पपाणा' थोडा જ ઇંડાવાળા છે. અહીયા પણ અલ્પ શબ્દ ત્ અર્થાંમાં હાવાથી નઞ અથમાં પ વસિત થયેલ છે તેથી ઇંડા વિનાના તેમ મથ` સમજવે. એજ પ્રમાણે અલ્પ પ્રાણ अर्थात् आशियो विमानो तथा 'अपबीया अध्यहनिया' जिन रहित भने सीसोतरीपणा आ० ६४ શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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