SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 502
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध ३ उ. १ सू० १ तृतीयं ईर्याध्ययननिरूपणम् ____४९१ त्मकमिश्रद्रव्ये उच्यते, यस्मिन् क्षेत्रे गमनं क्रियते गमनरूपा ई वा वय॑ते सा क्षेत्रेर्या, एवं यस्मिन् काले गमनं क्रियते सा काले कथ्यते, भावेर्या तावद् द्विविधा-चरणेर्या-संयमे र्या भेदात, तत्र सप्तदश विधसंयमानुष्ठानरूपा संयमेर्या, चरणं गमनं भावे ल्युट् प्रत्ययः तथा च गमनरूपा ईर्या चरणेर्या उच्यते, तदुक्तम् 'दव्य इरियामो तिविहा सचिताचित्तमीसगा चेव । खित्तम्मि जम्मि खित्ते काले कालो जहिं होइ॥ भाव इरियाओ दुविहा चरणरिया चेव संजमरिया थ। समणस्स कहं गमणं निदोसं होइ परिसुद्धं ॥ इति ॥ रथ वगैर की गमन रूपा सचित्ताचित्तात्मकमिश्र द्रव्येर्या समझनी चाहिये, और जिस क्षेत्र अर्थात् देश में गमन किया जाता है या गमन रूपा ईयो का वर्णन किया जाता है उसको क्षेत्रेर्या कहते हैं, इसी तरह जिस काल में गमन किया जाता है उसको कालेर्या कहते हैं और चरणेर्या तथा संयमेर्या के भेद से भावेर्या दो प्रकार की होती है, उनमें सतरह प्रकार के संयमानुष्ठान रूपा संयमेर्या समझनी चाहिये और गमनरूपाइर्या चरणेर्या कहलाती है क्योंकि 'चरगतो' इस धातुसे भाव में अनट् प्रत्यय करके निष्पन्न चरण शब्द का अर्थ गमनरूपा होता है इन सभी ईर्याओं का निरूपण आगममें किया गया है जैसे 'दव्य इरियाओ तिचिहा सचिनाचित्त मीसगा चेव' द्रव्य इयो तीन प्रकार की कही है वह इस प्रकार सचित्त अचित्त एवं मिश्र 'खित्तम्मि जम्मि खित्ते क्षेत्र में जिस क्षेत्र में काले कालो जहि होइ' कालमें जिस किसी कालमें हो, "भायरियाओ दुविहा' भाव इयां दो प्रकार की है-'चरणेरियाचेव' चरण इा एवं 'संजमेरिया य' संयमइर्या 'समणस्स कहं गमणं निहोस होइ' श्रमणों का कोनसा गमन દ્રવ્ય ઈર્યા સમજવી. તથા જે ક્ષેત્રમાં અર્થાત દેશમાં ગમન કરાતું હોય અગર ગમનરૂપ ઈર્યાનું વર્ણન કરવામાં આવતું હોય તેને ક્ષેત્ર ઈર્યા કહે છે. અજ પ્રમાણે જે કાળમાં ગમન કરાતું હોય તેને કાળ ઈર્યા કહે છે. તથા ચરણ ઇર્યા અને સંયમ ઈર્યાના ભેદથી ભાવ ઈર્યા બે પ્રકારની થાય છે. તેમાં સત્તર પ્રકારના સંયમાનુષ્ઠાન રૂપા સંયभेर्या सभणी. सने मन३५॥ यी ५२ध्या उपाय छ. म है 'चरगतौ' 20 पातुथी ભાવમાં અનપ્રત્યય લગાડીને બનાવેલ ચરણ શબ્દનો અર્થ ગમન રૂપ થાય છે. આ सघणी ध्यासानु नि३५९५ मामीमा ४२वामां आवे छे म 'दव्य इरियाओ तिविहा' द्रव्य ध्र्या १४२नी 'सचित्ताचित्तमीसगा चेव' सवित्त, वित्त मने मिश्रा 'खित्तम्मि जम्मि खित्ते कालेकालो जहिं होइ' क्षेत्र या २ क्षेत्रमा गमन ४२यानुडाय ते क्षेत्र ध्र्या छ. २ मा मत ४२।तु डाय ते ण छ. 'भाय इरियाओ दुविहा' लाय ध्या में प्रारनी. 'चरणइरिया चेव संजमेरिया चेव' ५२६ ध्यो मन सय रिया श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy