SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 496
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. ३ सू० ६६ शय्येषणाध्ययननिरूपणम् ४८५ टीका-'सम्प्रति सामान्यतः शय्यामधिकृत्य किञ्चिद् विशेषं वक्तमाह-से भिक्ख वा भिक्खुणी वा' स भिक्षु भिक्षुकी वा शय्यामधिष्ठाय विहरेत् न किञ्चिदपि ग्लायेदित्यग्रे. णान्वयः कीदृशी शय्या स्यादित्याह-'समावेगया सेज्जा भवेज्जा' समा वा-समास्तृता वा एकदा-कदाचित् शय्या भवेत्, 'विसमावेगया सेज्जा भविज्जा' विषमा वा-विषमास्तृता वा, एकदा-कदाचित् शय्या-संस्तारकरूपा भवेत् 'पवाया वेगया सेज्जामवेज्जा' प्रवाता यावानाभिमुखी था, एकदा-कदाचित् शय्या भवेत् 'निवायावेगया सेज्जाभवेज्जा' निवाता वा प्रतिकूलयाता वा एकदा-कदाचित् शय्या भवेत् 'ससरक्खावेगया सेज्जाभवेज्जा' सरज. स्काधूलियुक्ता वा एकदा-कदाचित् शय्या मवेत् 'अप्पससरक्खावेगया सेज्जा भवेज्जा' अल्परजस्का वा-अल्पधूलियुक्ता वा, धूलिहिता वा, एकदा शय्या भवेत्, ‘सदंसमसगावेगया सेज्जा भवेज्जा' सदंशमशका वा-दंशमशक युक्ता वा, एकदा कदाचित् शय्या जिस किसी भी प्रकार की शय्या हो उस पर शयन करले कुछ भी ग्लानि न करे चाहे वह शय्या संस्तारक फलक पाट वगैरह कदाचित् 'समावेगया सेज्जा भवेजा' समरूप से आस्तृत हो या 'विसमावेगया सेज्जा भवेजा' विषमरूप से ही क्यों न आस्तृत बिछायी हो एवं वह शय्या 'पवातावेगया सेजा भवेज्जा' प्रवात के अभि. मुख हो या "णिवातावेगया सेज्जा भवेज्जा' निवात के अभिमुख ही क्यों न हो अर्थात् चाहे कदाचित् यह अनुकूल वायुके सामने हो या प्रतिकूल वायु के सामने ही विछापी गयी हो एवं ससरक्खा वेगया सेज्जा भवेज्जा' कदाचित् सरजस्का अत्यंत धूली रजोकण से भरी हुई शय्या हो या 'अप्प ससरक्खा वेगया सेज्जा भवेज्जा' थोडे हो धूली रजोकण से भरी हुई हो अथवा धूली रहित हो एवं 'सदंसमसगवेगाया सेज्जा भवेज्जा' अधिक दंश डांस मशक मच्छरों से यक्त शय्या हो या 'अप्प दंसमसगावेगया सेज्जा भवेज्जा' थोडे ही दंश मच्छरों से युक्त हो उस पर संयमशील साधु और साध्वी को सो जाना चाहिये किसी ગમે તે પ્રકારની શવ્યા હોય તેના પર શયન કરી લેવું. તેમાં કંઈપણ ગ્લાની કરવી नही यात शय्या पाट ३४ विगैरे हाय 'समावेगयासेज्जा भवेज्जा' सभी शत पाथरेस डाय अथवा 'विसमावेगया सेज्जा भवेज्जा' विषभ ३५थी म न पाथरीय पवातावेगया सेज्जा भवेज्जा' तथा ते शल्या पातालभुम डाय अथवा 'णिवाता वेगया सेजा भवेज्जा' अथवा वायु डिंत हेशमा सय मयातू या ते शय्या मनु पाथ त२६ पाथरे डाय प्रति वायुनी साभ पाथरे डाय तथा 'ससरक्खा वेगया सजा भबेजा' स२०१४२४ मर्थात् सत्यपि यूजना २४थी मरेस या डाय 4441 सक्खा वेगया सेज्जा भवेज्जा' थे.डी. धुजना २१:४। पाजी डाय ५ विनाना नाय तथा 'सइंसमसगावेगया सेज्जा भयेज्जा' पारे ५७i iस भ२७२राजीत सध्या डाय 'अप्पदसमसगा वेगया सेज्जा भवेज्जा' थोडा ४ siस भ२७२राथी सात श्री आया। सूत्र : ४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy