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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. ३ २० ४५ शय्येषणाघ्ययननिरूपणम् ४४५ स साघु: यदि पुनरेवं वक्ष्यमाणस्वरूपम् उपाश्रयं जानीयात् तद्यथा-'इह खलु गाहावई वा' इह खलु उपाश्रयनिकटे गृहपति वा 'गाहावाभारिया वा' गृहपनिभार्या वा 'गाहावइ मगिणि वा' गृहपति भगिनी वा गृहपतिस्वसा 'गाहावइपुत्तो वा' गृहपतिपुत्रो या 'गाहावइधृए या' गृहपति दुहिता वा 'गाहावइसुण्हा वा' गृहपतिस्नुषा या 'धाई वा' धात्री वा 'दासो वा दासो वा 'जाव कम्मकरीओ पा' यावद दासी वा कर्मकरो वा कमें करी या 'अण्णमण्णस्स' अन्योन्यस्य परस्परस्य 'गायं सीओदगवियडेण वा' गात्रम् शरीरम् शरीरावयवहस्तपादादिकं वा शीतोदकविकटेन शीतोदकविशेषेण 'उसिणोदगवियडेण वा' उष्णोदकविकटेन वा उष्णोदकविशेषेण 'उच्छोलंति वा' उत्क्षालयन्ति वा 'पहोयंति या' प्रधावन्ति वा प्रक्षालयन्ति वा "सिंचंति वा' सिञ्चन्ति या 'सिणावंति वा' स्नपयन्ति वा स्नानं कारयन्ति 'णो पण्णस्त णिक्खमणपवेसणाए' नो प्राज्ञस्य संयमशीलस्य निष्क्रमण प्रवे. माण रूप से उपाश्रय को जान ले कि 'इहखलु उवस्सए' इस उपाश्रय का निकटवर्ती गृहस्थ श्रावक के घर में 'गाहाई वा, गाहाचई भारिया या' गृहपति गृहस्थ श्रावक या गृहपति की भार्या-धर्मपत्नी 'गाहावई भगिणी वा' या गृहपति की भगिनी-चहन 'गाहावई पुत्तो पा' या गृहपति का पुत्र 'गाहाईधूएवा' या गृहपति की दुहिता-कन्या 'गाहावई सुण्हावा'-या गृहपति की स्नुषा पुत्रवधू 'धाईया'-या धात्री धाई परिचारिका अथवा 'दासो वा जाव' दास सेवक या यावत् 'कम्म करीओ बा' दासी सेविका अथवा कर्मकर नौकर या कर्मकरी नोकरानी इनमें से कोई एक भी 'अण्णमण्णस गायं सीओदगवियडेण वा अन्योन्य परस्पर के गात्र शरीर को या शरीरावयव हाथपाद वगैरह को अत्यंत शीतोदक ठंडा पानी से या 'उसिणोदगवियडेण वा' उष्णोदक विशेष गरम पानी विशेष से 'अच्छोलंति या पधोति वा एकवार प्रक्षालित कर रहे हैं या अनेक वार प्रक्षालित कर रहे हैं 'सिंचंति या' या सिंचन कर रहे हैं अथवा 'सिणाचेति वा' जं पुण उबस्सयं एवं जाणिज्जा' ने पक्ष्यभार ४१२ मे 60श्रय ) -'इह खलु उपस्सए गाहावइ बा' 20 अयनी ना रहे। गृहस्य श्राय: ५५ 'गाहाबइ भारिया या' २५ श्रायनी खी अथवा 'गाहावइ भगिणी वा' स्थनी मन अथवा गाहावइ पुत्तो वा' गृहस्थनी पुत्र मथ। 'गाहावइ धूए वा' गृहपतिनी पुत्री मया 'गाहावइ सुण्हा या' पतिनी पुत्र५५ १५4'धाई वा' था परियार अथवा 'दासो वा' ससे अथवा 'जाव कम्मकरी वा' यावत् सी-सेपि। अथवा उभ७२-७२ मथ भरी ४२ २ मा 48 3 से 4 'अण्णमण्णस्स गाय सीओदगवियडेण થા' એક બીજાના શરીરને કે શરીરના અવયવ હાથ પગ વિગેરેને ઠંડા પાણીથી અથવા 'उसिणोदगवियडेण वा' १२ पाथी 'उच्छोलंति वा पघोति या पार धुने छ अथपा पारपार घाय। छ. अथवा सिंचंति वा सिणाति वा' ७४५ ४२ छ मा नय श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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