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________________ आचारांगसूत्रे अभ्यङ्गयन्ति वा म्रक्षयन्ति वा नो प्राज्ञस्य निष्क्रमणप्रवेशनाय यावद् अनुचिन्तायै, तथा प्रकारे उपाश्रये नो स्थानं या शय्यां वा यावत् चेतयेत् ॥सू० ४३॥ ___टीका-सम्प्रति तैलाभ्यङ्गकर्तृगृहस्थ गृहनिकटवर्ति उपाश्रये साधूनां वासनिषेधमाह'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' स भिक्षुर्या भिक्षुकी वा साधु वा साध्वी से जं पुण उयस्सयं जाणिज्जा' स साधुः यदि पुनिरेवं वक्ष्यमाणस्वरूपम् उपाश्रयं जानीयात् तद्यथा-'इह खलु' गाहावइ वा' इह खलु उपाश्रयनिकटे गृहपनि वा 'गाहायइभारिया वा' गृहपतिभार्या या 'गाहावइभगिणी वा' गृहपतिभगिनी वा 'गाहावइपुत्तो वा' गृहपतिपुत्रो वा 'गाहावइ धृए या' गृहपतिदुहिता वा 'गाहावइ मुण्हा वा' गृहपतिस्नुषा वा गृहपतिपुत्रवधुर्वा 'धाई या' घात्री वा 'दासो वा' दासो या 'जाव कम्मकरी वा' यावद् दासी वा कर्मकरो वा कर्मकरी वा 'अण्णमण्णस्स' अन्योन्यस्य 'गायं तिल्लेण वा घएण वा' गात्रम् शरीरावयवं तैलेन वा घृतेन वा 'गवनीएण वा' नवनीतेन वा हैयङ्गवीनेन जाव अभंगेंति या' अभ्यङ्गयन्नि वा ___ अब शरीर में तेल वगैरह का मालिश करने वाले गृहस्थ के घर के निकटवर्ती उपाश्रय में साधु को नहीं रहना चाहिये ऐसा बतलाते है-'से भिक्खू वा मिक्खूणी या' वह पूर्वोक्त भिक्षुक जैन साधु और मिक्षुकी जैन साध्वी यदि ऐसा वक्ष्यमाण रूपसे उपाश्रय को जान ले कि 'इहखलु इस उपाश्रय के निकट वर्ती घरमें 'गाहावई चा, गाहावई भारिया वा गाहावईभगिणी वा'-गृहपति गृहस्थ श्रावक या -गृहपति की भार्यां धर्मपत्नी या गृहपति की भगिनी या 'गाहावई पुत्तो वा'-या गृहपति का पुत्र अथवा 'गाहाचई धूएवा' गृहपति कीदुहिता-लडकी या-'गाहावईसुण्हा वा' गृहपति की स्नुषा-पुत्रवधू या 'धाई वा' धात्री या 'दासो जाय कम्मकरो वा' दास अथवा दासी या कर्मकर या कर्मकरी या 'अण्णमण्णस्त गायं' अन्योन्य परस्पर में गात्र शरीर का 'तेल्लेण वा घएण वा, नघनीएण या'-तेल से था घृत से या नवनीत मक्खन से 'अन्भंगे ति હવે શરીરમાં તેલ વિગેરેની માલીશ કરવાવાળા ગૃહસ્થના ઘરની પાસેના ઉપાશ્રયમાં સાધુને ન રહેવા કથન કરે છે. - टी-'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' ते पूरित सयमशीस साधु भने साथी से जं पुण उवस्सय जाणिज्जा' ले २॥ १६यमा २१1। पाश्रय on 8-'इह खलु गाहावइ वा' 41 Guपनी घरमा ३२५ श्रा१४ १५41 'गाहावइ भारिया वा' ६२५ श्रावनी पत्नी 420 गाहावइभगिणी वा' ७२५ श्रावनी मन अथवा 'गाहावइ पुत्तो वा' १९२५ आपने पुत्र मय! 'गाहावइ धूया वा' १२५ श्रापनी पुत्री अ५। 'सुण्हा वा' गृहस्थ श्रा५४नी पुत्रवधू 2424। 'धाई वा' चा अथवा 'दासो वा' हास ५५५। 'जाव कम्मकरी वा' हासी ४७२ भय। भी 'अण्णमण्णरस गाय ते लेण वा' ५२०५२ शरीरने तेथी या 'चएण वा' थीl या 'नवनीपण या' मामी श्री माया सूत्र:४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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